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धर्मोंका मिलन
[ सर सर्वपल्ली राधाकृष्णनके 'मीटिंग आफ रिलीजियन्स'के गुजराती अनुवादकी प्रस्तावना]
प्रस्तुत पुस्तकमें सर राधाकृष्णनने इंग्लेडमें जो अनेक व्याख्यान दिये और लेख लिखे, उनका अपुनरुक्त संग्रह है। इनमें छोटे-बड़े अनेक विषयोंकी अनेकमुखी चर्चा है ऐतिहासिक दृष्टि और तुलनात्मक पद्धतिसे की गई है।
इनमें तीन विशेषताएँ विशेषरूपसे दृष्टिगोचर होती हैं--(१) जी ऊब जाय ऐसा विस्तार किये बिना मनोहर शैलीसे बिल्कुल स्फुट चर्चा करना, (२) प्रस्तुत विषयमें गंभीर भावसे लिखनेवाले अन्य अनेक लेखकोंकी साक्षी देकर सम्बद्ध अवतरणोंके समुचित संकलनसे अपने वक्तव्यको स्फुट और समृद्ध बनाना और (३) तीसरी विशेषता उनकी तर्कपटुता और सममाव है।
भूतकालकी तरह इस युगमें भी भारतमें अनेक समर्थ धर्मचिन्तक धर्मके विषयमें साधिकार लिखने-बोलनेवाले उत्पन्न हुए हैं। असाधारणता उन सबमें हैं, फिर भी भूमिका सबकी भिन्न भिन्न है। भारत और भारत-बाह्य विश्वमें धर्मविषयक विचारणा और अनुभूतिकी विशिष्ट छाप जमानेवाले पाँच महापुरुष सुविदित हैं । अरविन्द घोष गूढ तान्त्रिक साधना और गूढवाणीद्वारा धर्मके गूढ तत्त्वोंका प्रकाश करते हैं । वह पारदके रसायन जैसा सर्वभोग्य नहीं । कविवर रवीन्द्र अपनी कविसुलभ सर्वतोमुखी प्रतिभा और सहजसिद्ध भाषासमृद्धिके हृदयंगम अलंकारोंसे धर्म-तत्त्वका सरस निरूपण करते हैं । वह उपनिषत् और गीताकी गाथाओं के समान सरलतम और गूढतम दोनों प्रकारका काव्य बन जाता है। इससे वह बहुभोग्य होते हुए भी
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