Book Title: Dharma aur Samaj
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
Publisher: Hemchandra Modi Pustakmala Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 213
________________ १९६ धर्म और समाज सुन्दर ढंगसे उपयोग करता है कि उसीमेंसे उसके सामने अपने आप नये साधनोंकी सृष्टि खड़ी हो जाती है। वे बिना बुलाये आकर सामने खड़े हो जाते हैं । जो इस प्रकारकी जीवन-कलासे अपरिचित होता है वह हमेशा यह नहीं, वह नहीं, ऐसा नहीं, वैसा नहीं, इस ढंगकी शिकायत करता ही रहता है । उसके सामने चाहे जैसे और चाहे जितने साधन रहें वह उनका मूल्य नहीं समझ सकता। क्योंकि जंगल में मंगल करनेकी कलासे वह अपरिचित होता है। परिणामतः ऐसा विद्यार्थी प्राप्त सुविधाके लाभसे तो वंचित रह ही जाता है साथ ही भावी सुविधाकी प्राप्ति उसके मनोराज्यमें रहकर उलटी व्याकुलता पैदा कर देती है। इसलिए हम किसी भी क्षेत्रमें हों और कुछ भी करते हों, जीवनकला सबसे पहले आवश्यक है । जीवन-कला अर्थात् कमसे कम और नगण्य साधन सामग्रीसे भी संतुष्ट रहना, आगे बढ़नेमें उसका उपयोग कर लेना और स्वपुरुषार्थसे अपनी इच्छित सृष्टि खड़ी कर लेना। __ असुविधाओंका अतिभार यदि जीवनको कुचल सकता है, तो सुविधाओंका ढेर भी वही कर सकता है । जिसके सामने बहुत सुविधाएँ होती हैं वह हमेशा प्रगति कर सकता है अथवा करता है, ऐसा कोई ध्रुव नियम नहीं। इसके विपरीत जो अधिक असुविधा अथवा कठिनाईमें होता है वह पीछे रह जाता है अथवा कुचला जाता है, यह भी कोई ध्रुव नियम नहीं। ध्रुव नियम तो यह है कि बुद्धि और पुरुषार्थ होने पर प्रत्येक स्थितिमें आगे बढ़ा जा सकता है । जिसमें इस तत्त्वको विकसित करनेकी भूख होती है वह सुविधा असुविधाकी झंझटमें नहीं पड़ता। कई बार तो वह 'विपदः सन्तु नः शश्वत्' कुन्तीके इस वाक्यसे विपत्तियोंका आह्वान करता है। मैंने एक ऐसे महाराष्ट्र विद्यार्थीको देखा था जो माता-पिताकी ओरसे मिलनेवाली सभी सुविधाओंको छोड़कर अपने पुरुषार्थसे ही कालेजमें पढ़ता था और बी. एस. सी. का अभ्यास करनेके साथ साथ खर्चयोग्य कमानेके उपरान्त स्वयं भोजन पकाकर थोड़े खचमें जीनेकी कला सिद्ध करता था। मैंने उससे पूछा कि " पढ़ने लिखनेमें बहुत बाधा पड़ती होगी ? " उसने कहा कि "मैंने आरंभसे ही इसी ढंगसे जीना सीखा है कि आरोग्य बना रहे, और विद्याभ्यासके साथ साथ स्वाश्रयवृत्तिमें आत्म-विश्वास बढ़ता चला जाय।" अन्तमें उसने उच्च श्रेणीमें बी. एस. सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की । हम यह जानते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227