Book Title: Dharma aur Samaj
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
Publisher: Hemchandra Modi Pustakmala Mumbai

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Page 186
________________ विचार-कणिका विश्व-शान्तिका सिद्धान्त निश्चित होता है किन्तु उसका हिमायती प्रत्येक राष्ट्र फिर वैयक्तिक दृष्टिसे ही सोचने लग जाता है । इसीसे न तो विश्व-शांति सिद्ध होती है और न राष्ट्रीय उन्नति स्थिरताको प्राप्त होती है । यही न्याय प्रत्येक समाजमें लागू होता है । किन्तु यदि सामूहिक जीवनकी विशाल और अखण्ड दृष्टिका उन्मेष किया जाय और उसी दृष्टिके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपनी जवाबदेहीकी मर्यादाको विकसित करे, तो उसके हिताहितकी दूसरोंके हिताहितोंसे टक्कर नहीं होगी और जहाँ वैयक्तिक हानि दीखती होगी वहाँ भी सामूहिक जीवनके लाभकी दृष्टि उसे संतोष देगी। उसका कर्तव्य-क्षेत्र विस्तृत हो जानेसे उसके सम्बन्ध भी व्यापक बन जायँगे और वह अपनेमें एक 'भूमा' का साक्षात्कार करेगा। ३-दुःखसे मुक्त होनेके विचारमेंसे ही उसके कारणभूत कर्मसे मुक्त होनेका विचार स्फुरित हुआ। ऐसा माना गया कि कर्म, प्रवृत्ति या जीवनव्यवहारका उत्तरदायित्व स्वतः ही बन्धनरूप है। उसका अस्तित्व जब तक है, तब तक पूर्ण मुक्ति संभव ही नहीं। इस धारणामेंसे कर्ममात्रकी निवृत्तिके विचारमेंसे श्रमण-परंपराका अनगारमार्ग और संन्यास-परम्पराका वर्ण-कर्मधर्मसंन्यास फलित हुआ । किन्तु उसमें जो विचार-दोष था वह शनैःशनैः सामूहिक जीवनकी निर्बलता और बिन-जबाबदेहीके द्वारा प्रकट हुआ। जो अनगार हुए या जिन्होंने वर्ण-कर्म-धर्मका त्याग किया, उन्हें भी जीना तो था ही । हुआ यह कि उनका जीवन अधिक मात्रामें परावलम्बी और कृत्रिम हो गया। सामूहिक जीवन के बंधन टूटने और अस्त-व्यस्त होने लगे। इस अनुभवसे सीख मिली कि केवल कर्म बंधन नहीं है किन्तु उसमें रहनेवाली तृष्णा. वृत्ति या दृष्टिकी संकुचितता और चित्तकी अशुद्धि ही बन्धनरूप है। इन्हींसे दुःख होता है । इसी अनुभवका निचोड़ है अनासक्त कर्मवादके प्रतिपादनमें। इस पुस्तकके लेखकोंने उसमें संशोधन करके कर्मशुद्धि का उत्तरोत्तर प्रकर्ष सिद्ध करनेको ही महत्व दिया है और उसी में मुक्तिका साक्षात्कार करनेका प्रतिपादन किया है । पाँवमें सुई घुस जाय तो निकाल कर फेंक देनेवालेको सामान्य रूपसे कोई बुरा नहीं कहेगा। किन्तु जब सुई फैंकनेवाला पुनः सीनेके लिए या अन्य प्रयोजनसे नई सुईकी तलाश करेगा और न मिलनेपर अधीर होकर दुःखका अनुभव करेगा, तब बुद्धिमान मनुष्य उससे अवश्य कहेगा कि तुमसे भूल हुई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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