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धर्म और समाज
. खून करने में ही भरोसा रखनेवाली और उसीमें पुरुषार्थ समझनेवाली 'बारैया' जातिको सुधारनेकी लगन लगी। उन्होंने अपना जीवन इस जातिके बीच ऐसा ओतप्रोत कर लिया और अपनी जीवन-पद्धतिको इस प्रकार परिवर्तित किया कि धीरे-धीरे यह जाति आप ही आप बदलने लगी, खूनके गुनाह खुद-ब-खुद कबूल करने लगी और अपने अपराधके लिए सजा भोगनेमें भी गौरव मानने लगी । आखिरकर यह सारी जाति परिवर्तित हो गई।
रविशंकर महाराजने हाई स्कूल तक भी शिक्षा नहीं पाई, तो भी उनकी वाणी बड़े बड़े प्रोफेसरों तकपर असर करती है। विद्यार्थी उनके पीछे पागल बन जाते हैं । जब वे बोलते हैं तब सुननेवाला समझता है कि महाराज जो कुछ कहते हैं, वह सत्य और अनुभवसिद्ध है। केन्द्र या प्रान्तके मन्त्रियों तक पर उनका जादू जैसा प्रभाव है । वे जिस क्षेत्रमें कामका बीड़ा उठाते हैं, उसमें बसनेवाले उनके रहन-सहनसे मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं -क्यों कि उन्होंने पहले अपने आपको तैयार किया है-बदला है, और बदलनेके रास्तोंका-भेदोंका अनुभव किया है । इसीसे उनकी वाणीका असर पड़ता है। उनके विषयमें कवि और साहित्यकार स्व० मेघाणीने 'माणसाईना दीवा' ( मानवताके दीपक) नामक परिचय-पुस्तक लिखी है । एक और दूसरी पुस्तक श्री बबलभाई मेहताकी लिखी हुई है ।
दूसरे व्यक्ति हैं सन्त बाल, जो स्थानकवासी जैन साधु हैं । वे मुँहपर मुहपत्ती, हाथमें रजोहरण आदिका साधु-वेष रखते हैं, किन्तु उनकी दृष्टि बहुत ही आगे बढ़ी हुई है । वेष और पन्थके बाड़ोंको छोड़कर वे किसी अनोखी दुनियामें विहार करते हैं। इसीसे आज शिक्षित और अशिक्षित, सरकारी या गैरसरकारी, हिन्दू या मुसलमान स्त्री-पुरुष उनके वचन मान लेते हैं । विशेष रूपसे 'भालकी पट्टी' नामक प्रदेशमें समाज-सुधारका कार्य वे लगभग बारह वर्षोंसे कर रहे हैं । उस प्रदेशमें दो सौसे अधिक छोटे-मोटे गाँव हैं । वहाँ उन्होंने समाजको बदलनेके लिए जिस धर्म और नीतिकी नींवपर सेवाकी इमारत शुरू की है, वह ऐसी वस्तु है कि उसे देखनेवाले और जाननेवालेको आश्चर्य हुए बिना नहीं रहता । मन्त्री, कलेक्टर, कमिश्नर आदि सभी कोई
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