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धर्म और समान
इसके सिवाय उसके पास ज्ञान और शिक्षा के किसी भी प्रदेशमें काम करने लायक शक्ति व्यर्थ पड़ी रहती है । उसे अपने जीवन में सद्गुणों का विकास करने और लोगों में उन्हें प्रविष्ट करानेकी भी पूरी सरलता होती है । इसे त्यागी संस्थाका एक बड़े से बड़ा गुण गिना जा सकता है । परंतु त्यागी के जीवन में एक ऐसी चीज़ दाखिल हो जाती है कि जिसके कारण इन गुणोंके विकास की 'बात तो एक ओर धरी रह जाती है, उसकी जगह कई महान् दोष आ जाते हैं । वह चीज़ है अनुत्तरदायित्वपूर्ण जीवन । सामान्य रूपसे तो त्यागी कहे और माने जानेवाले सभी व्यक्ति अनुत्तरदायी होते हैं। बहुत बार ऐसा आभास तो होता है कि ये लोग जिस संस्थाके अंग होते हैं उसके प्रति अथवा गुरु आदि वृद्धजनोंके प्रति उत्तरदायी होते हैं परंतु कुछ गहरे उतर कर देखनेपर स्पष्ट मालूम होता है कि उनका यह उत्तरदायित्वपूर्ण जीवन नाम मात्रको ही होता है । उनका न तो ज्ञानप्रेरित उत्तरदायित्वपूर्ण जीवन होता है और न मोहप्रेरित । यदि कोई गृहस्थ समयपर काम नहीं करता है, धरोहर रखनेवाले या सहायता पहुँचानेवालेको उचित जवाब नहीं देता है, या किसीके साथ अच्छा बर्ताव नहीं करता है. तो उसकी न तो शाख बँधती है, न निर्वाह होता है, न रुपये मिलते हैं और न उसे कोई कन्या ही देता है । परंतु त्यागी तो निर्मोही कहलाते हैं, इसलिए वे ऐसी मोहजनित जिम्मेदारी अपने सिरपर लेनेके लिए क्यों तैयार हों ? अब बची ज्ञानप्रेरित जिम्मेदारी, सो ये त्यागी अपना जितना समय बर्बाद करते हैं, जितनी शक्ति व्यर्थ खोते हैं और भक्तों तथा अनुगामियोंकी ओरसे प्राप्त सुविधाको जितना नष्ट करते हैं, वह ज्ञानप्रेरित जिम्मेदारी होने पर जरा भी संभव नहीं है । जिसमें ज्ञानप्रेरित जिम्मेदारी होती है वह एक भी क्षण व्यर्थ नहीं खो सकता, अपनी थोड़ी-सी भी शक्तिके उपयोगको विरुद्ध दिशामें जाते सहन नहीं कर सकता और किसी दूसरेके द्वारा प्राप्त हुई सुविधाका उपयोग तो उसे चिंताग्रस्त कर देता है । परंतु हम त्यागी - संस्थामें यह वस्तु सामान्य • रूपसे नहीं देख सकते । अनुत्तरदायित्त्वपूर्ण जीवनके कारण उनमें अनाचारका एक महान् दोष प्रविष्ट हो जाता है। सौ गृहस्थ और सौ त्यागियोंका आन्तरिक जीवन देखा जाय, तो गृहस्थोंकी अपेक्षा त्यागियोंके जीवन में ही अधिक भ्रष्टाचार मिलेगा । गृहस्थोंमें तो अनाचार परिमित होता है, परन्तु त्यागियोंमें अपरिमित ।
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