Book Title: Dharma aur Samaj
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
Publisher: Hemchandra Modi Pustakmala Mumbai

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Page 171
________________ १५४ धर्म और समाज इतिहास और परम्पराकी दृष्टि से भ्रान्त है । इतिहास और परम्पराका ठीक ठीक ज्ञान न होनेसे यह पक्ष अपनी मान्यताकी पुष्टिके लिए हिन्दू शब्दकी उक्त संकीर्ण व्याख्या गढ़ लेता है। अतः इस सम्बन्धमें थोड़ा गंभीर विचार करना होगा। ग्रीक लोग सिन्धुके तटसे यहाँ आये थे। वे भारतके जितने जितने प्रदेशको जानते गये उतने उतने प्रदेशको अपनी भाषामें 'इन्डस' कहते गये। भारतके भीतरी भागोंसे वे ज्यों ज्यों परिचित होते गये त्यों त्यों उनके 'इंडस' शब्दका अर्थ भी विस्तृत होता गया। मुहम्मद पैगम्बरसे पहले भी अरब व्यापारी भारतमें आते थे। कुछ सिन्धु नदीके तट तक आये थे और कुछ समुद्री मार्गसे भारतके किनारे किनारे पश्चिमसे पूर्व तक-जावा सुमात्रासे लेकर चीन तक-यात्रा करते थे। ये अरब व्यापारी भारत के सभी परिचित किनारोंको 'हिन्द' कहते थे। अरबोंको भारतकी बनी हुई तलवार बहुत पसन्द थी और वे उसपर मुग्ध थे। भारतकी सुखसमृद्धि और मनोहर आबोहवाने भी उन्हें बहुत आकृष्ट किया था। इस लिए भारतकी तलवारको वे उसके उत्पत्ति-स्थानके नामसे 'हिन्द' कहते थे। इसके बाद पैगम्बर सा० का जमाना आता है। मुहम्मद बिन कासमने सिन्धमें अपना अड्डा जमाया। फिर महमूद गजनबी तथा अन्य आक्रमणकारी मुसलमान देशमें आगे-आगे बढ़ते गये और अपनी सत्ता जमाते गये। इस जमानेमें मुसलमानोंने भारतके लगभग सभी भागोंका परिचय पा लिया था, इसलिए मुसलिम इतिहास-लेखकोंने भारतको तीन भागोंमें बाँटा-सिन्ध, हिन्द और दक्षिण । हिन्द शब्दसे उन्होंने सिन्धुके आगेके समस्त उत्तर हिन्दुस्थानको पहिचाना । अकबर तथा अन्य मुगल बादशाहोंने राज्य-विस्तारके समय राज-काजकी सुविधाके लिए समस्त भारतको ही 'हिन्द' नामसे व्यवहृत किया। इस तरह हिन्द और हिन्दू शब्दका अर्थ उत्तरोत्तर उसके प्रयोग और व्यवहार करनेवालोंकी जानकारीके अनुसार विस्तृत होता गया और फिर अंग्रेजी शासनमें इसका एकमात्र निविवाद अर्थ मान लिया गयाकाश्मीरसे कन्याकुमारी और सिन्धुसे आसाम तकका सम्पूर्ण भाग--सारादेश-हिन्द । इस तरह हिन्द और हिन्दुस्तानका अर्थ चाहे जितना पुराना हो और चाहे जिस क्रमसे विस्तृत हुआ हो, पर यह प्रश्न तो अब भी खड़ा रहता है कि हिन्दुस्तान में बसनेवाले सभी लोग हिन्दूसमाजमें शामिल हैं या उसमेंके खास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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