Book Title: Dharma aur Samaj
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
Publisher: Hemchandra Modi Pustakmala Mumbai

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Page 168
________________ युवकोंसे १५१ परिषद दो तीन सभ्योंकी समिति चुनकर उसे आवश्यक पाठ्य पुस्तकोंकी सूची बनानेका कार्य सौंपे और उस सूचीको प्रकाशित करे, जिससे प्रत्येक जैन युवक सरलतासे धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्य प्रश्नोंके विषयमें दूसरोंके विचार जान सके और खुद भी विचार कर सके । ऐसी सूची अनेक युवक-संघोंके संगठनकी प्रथम भूमिका बनेगी। केन्द्रस्थानके साथ अनेक युवकोंका पत्र-व्यवहार होनेपर कई युवक-संघोंका संगठन होगा। दस पाँच शहरोंके थोड़ेसे गिने चुने विचारशील युवक होनेसे कोई सार्वत्रिक युवक संघकी विचार-प्रवृत्ति नहीं चल सकती। मुखपत्रमें प्रकट हुए विचारोंको झेलनेकी सामान्य भूमिका सर्वत्र इसी प्रकार निर्मित हो सकती है । शिक्षाप्रधान शहरोंके संघोंको एक शिक्षासंबंधी प्रवृत्ति भी हाथमें लेनी चाहिए । शहरके संघोंको अपने कार्यालयमें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे स्थानीय या आसपासके गाँवोंके विद्यार्थी अपनी कठिनाइयाँ वहाँ आकर कह सकें। युवक-संघ भी अपनी शक्तिके अनुसार कुछ व्यवस्था करे या मार्ग दर्शन करे। इससे मार्ग और आलम्बनरहित भटकनेवाले या चिंता करनेवाले अपने भाइयोंको कुछ राहत मिल सकेगी। - इसके अतिरिक्त एक कर्त्तव्य उद्योगके बारेमें है । शिक्षाप्राप्त या बीचमें ही अध्ययन छोड़ देनेवाले अनेक भाई नौकरी या धंधेकी खोजमें इधर उधर भटकते फिरते हैं। उन्हें प्रारम्भमें दिशासूचनकी भी सहायता नहीं मिलती। यदि थोड़े दिन रहने, खाने आदिकी सस्ती सुविधा न भी दी जा दे सकें, तो भी परिस्थिति जानकर अगर उन्हें योग्य सलाह देनेकी व्यवस्था उस स्थानका संघ कर दे, तो इससे युवक-मण्डलोंका संगठन अच्छी तरह हो सकता है। __ हमारे आबू, पालीताणा आदि कुछ ऐसे भव्य तीर्थ हैं जहाँपर हजारों व्यक्ति यात्रा या आरामके लिए जाते रहते हैं। प्रत्येक तीर्थ हमारा ध्यान स्वच्छताकी ओर आकर्षित करता है। तीर्थ जितने भव्य और सुन्दर हैं वहाँपर मनुष्यकृत अस्वच्छता असुंदरता भी उतनी ही है। इसलिए तीर्थ-स्थानके या उसके पासके युवक-संघ आदर्श स्वच्छताका कार्य अपने हाथमें ले लें तो वे उसके द्वारा जनानुराग उत्पन्न कर सकते हैं । आबू एक ऐसा स्थान है जो गुजरात और राजपूतानाके मध्य होनेके अतिरिक्त आबहवाके लिए भी बहुत अच्छा है । वहाँके प्रसिद्ध जैन मंदिरोंको देखनेके लिए आनेवालोंका मन आबूकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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