Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 521
________________ २६६ धम्मवाणुओगे चात्यो संधी कुसुमेनं मुक्कपुंजोबार रिम्लामा करे, मलमला करेला कयग्ममहिरूरयलपविप्यमुषणं दस कलियं करेति करिता विपरिमाणं पुरतो अन्देहि सम्हेहि रामएहि अभ्रातंहि अद्दु मंगले आहि तं जहा सोविय - जाव- दप्पणं । तयणंतरं च णं चंदप्पभ - वइर-वेरुलियविमलदंडं कंचण-मणि रयणभत्तिचित्तं कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क धूवमघमघंतगं धुत्तमाणुविद्धं वधूव विगम्यं वेसियमयं कन्यं परमपि पत्ते धूवं बाऊण निणयराणं असपविच आत्यहि अहि महावित्तहिं संयुग संबुणिला सत पयाई पच्चीसक्कड़, पच्चोसविकत्ता वानं जाणुं अंबेड, अंचिता दाहिणं जाणं धरणितलंस निह तितो मुद्धा धरणितलंस निवाडे, निवाला पिष्णम, पच्नमित्ता करयपरिगहि सिरसावतं सत्यए अंजलि कट्टु एवं वयासी "नमोजणं अरहंताणं भगवंताणं आदिगराणं तित्वगराणं सयंसंबुदाणं पुरिमुत्तमाणं पुरिससीहा पुरिसवरपुंडरीवाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहिआणं लोगपईवाणं लोगपज्जोअगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं बोदियाणं धम्मदवाणं धम्मदेसयागं धम्मनायमाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतकवीणं अपवरनाथ-दंसणधराणं विजट्ट छमाणं जिणाणं जावयाणं तिष्णाणं तारयाणं बुद्धाणं बोयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सच्वन्नृणं सव्वदरिसीणं सिमलमरमतमत्रयमवाग्राहमणरावित्ति सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं।" वंदनसह, वंदिता नर्मसत्ता जेगेव देवच्छंदए जेमेव सिद्धायतपास बहुमज्जासभाए तेनेव उपागच्छछ, उवागडित लोमहत्व परामुख, परामसित्ता सिद्धायतनस्त बहुमज्झबेसभागं लोमहत्येगं पमज्जह, पमज्जिता दिव्याए बगधाराएं अनुभूि सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचलित मंडल आदि लिहिता कयमहिय जाब-जोवपारकलियं करे, करिता धूर्व बलव बसता जेणेव सिद्धाय हि दारे व उपागच्छद्र, उवागच्छता लोमहत्व परामुग्रह, परामुमिता दारोपसा मंजियाओ व बालवय लोमहत्वपूर्ण पमन्न, पमज्जिता दिव्वाए बगधाराए अम्भुक्छेद, अश्वित्ता, सरसेणं गोसीसमंदणं चच्चए बलयइ, दलइत्ता पुष्फारुहणं मल्ला० - जाव - आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्त० - जाव-धूवं दलयइ, दलइत्ता जेणेव दाहिणिले दारे मुहमंडवे जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामसइ, परामुसिता बहुमादेस भागं लोमहत्येवं पम, पमज्जिता दिव्वाए दगधाराए अनुक्छे, अक्खिता सरसेणं गोसीसचंद पंचलित मंडल आदि लिहिता कपमहाहिय० जाब-धूवं दल, दत्ता व वाहिणिरस मुहमंडवस्स पत्ि मिल्ल दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता दारचेडीओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए० सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता पुप्फारहणं जाव-आभरणारहणं करेइ, करिता आसत्तोसत्त० कयग्गहगहिय० धूवं दलयइ, दलइत्ता जेणेव दाहिणिल्लमुहमंडवस्स उत्तरिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामसित्ता थंभे य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएवं पमज्जइ, पमज्जित्ता जहा चेव पच्चत्थिमिल्लस्स दारस्स- जाव-धूवं दलयइ, दलइत्ता जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरत्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता दारचेडीओ० तं चैव सव्वं । जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिपिल्लं दारे व उपागन्छ, उपागच्छता दारचेडीओ व० तं देव सवं जेणेव दाते पेच्छापरमंडवे जेणेव दाहिगिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स महुमज्झदेसभागे जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्यगं परामुसद, परामुसित्ता अखाडगं च मणिपेडियं च सीहासणंच लोमहत्या पमम्जद, पमनित्ता दिव्याए बगधाराए०, सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता पुप्फारहणं० आसत्तोसत्त० - जाव-धूवं दलयइ, दलइत्ता जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ले दारे० । उत्तरिल्ले दारे तं चैव जं चेव पुरथिमिल्ले दारे तं चेव, दाहिणे दारे तं चेव । जेणेव दाहिणिल्ले चेइयथूभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता० थूभं मणिपेढियं च दिव्वाए दगधाराए अब्भु० सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता पुप्फारु० आसत्तो० - जाव-धूवं दलेइ, दलित्ता जेणेव पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चत्थिमिल्ला जिणपडिमा० तं चैव । जेणेव उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा तं चैव सव्वं । जेणेव पुरत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ० तं चेव । दाहिणिल्ला मणिपेढिया दाहिणिल्ला जिणपडिमा० तं चैव । जेणेव दाहणिल्ले चेइयरुक्खे तेणेव उवागच्छइ० तं चेव । जेणेव महिंदज्झए जेणेव दाहिणिल्ला नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छत्ता लोमहत्यगं परामुसद्द, परामुसिता तोरणे व तिसोवाणपडिरुपए व सालभंजियाओ व बालस्वए य सोमहत्वए मजद पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अन्भु० सरसेणं गोसीसचंदणेणं० पुप्फारहणं० आसत्तोसत्त० धूवं दलयइ, दलइत्ता सिद्धाययणं अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति ० तं चेव । जेणेव उत्तरिल्ले चेइयरुक्खे तेणेव उवागच्छति ० । जेणेव उत्तरिल्ले चेइयथूभे० तहेव । जेणेव पच्चत्थिमिल्ला पेढिया० । जेणेव पच्चत्थिमिल्ला जिणपडिमा० तं चेव । उत्तरिल्ले पेच्छाघरमंडवे तेणेव उपागच्छति । जा व दाहित्तिवत्तन्वया सा चैव धन्या पुरथिमिले दारे दाहिणिल्ला संमती तं चैव सव्वं । जेणेव । ० 1 0 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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