Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
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३४६
धम्मकहाणुओगे चउत्यो बंधो
भगवओ महावीरस्स समवसरणं २४८ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए ।
परिसा पडिगया ।
२४९
महासतगस्स अंतिए गोतम-पेसणं गोयमा ! इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं क्यासी--"एवं खलु गोयमा ! इहेष रायगिहे नयरे ममं अंतेवासी महासतए नाम समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिममारणंतियसलेहणाए झूसियसरीरे भत्तपाण-पडियाइक्खिए, कालं अणवकखमाणे विहरइ। तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स रेवती गाहावइणी मत्ता लुलिया विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं विकड्ढमाणी-विकड्ढमाणी जेणेव पोसहसाला, जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोहम्मायजणणाई सिंगारियाई इत्थिभावाई उवदंसेमाणी-उवदंसेमाणी महासतयं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! महासतया ! समणोवासया ! कि णं तुभं देवाणुप्पिया । धम्मेण वा पुण्णण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं गं तुम मए सद्धि ओरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाई भुंजमाणे नो विहरसि ? तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयमटुंनो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्माणोवगए विहरइ ।। तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं क्यासी० ।। तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणोए दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरत्ते रु? कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता रेवति गाहावइणि एवं वयासी--हंभो ! रेवती ! अप्पत्थियपत्थिए ! पुरंत-पंत-लक्खणे ! हीणपुण्णचाउद्दसिए ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिए ! एवं खलु तुमं अंतो सत्तरत्तस्स अलसएणं वाहिणा अभिभूया समाणी अट्ट-दुहट्ट-वसट्टा असमाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए नरए चउरासीतिवाससहस्सटिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिसि । नो खलु कप्पद गोयमा ! समणोवासगस्स अपच्छिममारणंतियसलेहणा-सूसणा-सूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स परो संतेहिं तच्चेहि तहिएहि सन्भूएहि अणि?हिं अकंतेहि अप्पिएहि अमणुणेहि अमणामेहि वागरणेहि वागरित्तए । तं गच्छ णं देवाणु प्पिया ! तुम महासतयं समणोवासयं एवं वयाहि-नो खलु देवाणुप्पिया ! कप्पइ समणोवासगस्स अपच्छिम मारणंतिय-संलेहणा-सूसणा-मुसियस्स मत्तपाण-पडियाइक्खियस्स परो संतेहिं तच्चेहि तहिरहिं सम्भूएहि अणि? हिं अकंतेहि अप्पिएहि अमणुणेहि अमणामेहि वागरणेहि वागरित्तए तुमे य णं देवाणुप्पिया ! रेवती गाहावइणी संतेहिं तच्चेहि तहिएहि सम्भएहि अणि?हि अकतेहिं अप्पिएहिं अमणुणेहि अमणामेहि वागरणेहि वागरिया । तं गं तुम एयस्स ठाणस्स आलोएहि पडिक्कमाहि निदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अन्भट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि ।"
गोतमस्स महासतयपुरओ आगमणं २५० तए णं से भगवं गोयमे समगस्स भगवओ महावीरस्स 'तह ति एयमट्ट विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तओ पडिणिक्खमइ,
पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मझमझेणं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव महासतगस्स समणोवासगस्स गिहे जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छद ।
महासतयकयं गोयमवंदणं २५१ तए णं से महासतए समणोवासए भगवं गोयम एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हटू-तुद्र-चित्तमाणदिए पीहमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस
विसप्पमाण-हियए भगवं गोयमं वंदह नमसइ ।
महासतयपुरओ गोयमस्स पायच्छित्तकरणरूवं भगवंतकहणनिरूवणं २५२ तए णं से भगवं गोयमे महासतयं समणोवासयं एवं क्यासी--"एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खाइ
भासइ पण्णवेइ परूवेइ--नो खलु कप्पइ देवाणुप्पिया ! समणोवासगस्स अपच्छिममारणंतियसलेहणा-यूसणा-मूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स परो संतेहि तच्चेहि तहिएहि सम्भूएहि, अणिहि अकंतेहिं अप्पिएहि अमणुणेहि अमणामेहि वागरणेहं वागरि
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