Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
View full book text
________________
धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
तए णं सा देवदत्ता तेसि सत्यवाहदारगाणं एयमटुं पडिसुई, पडिसुगेता व्हाया कपलिकम्मा-जाव-सिरी-समाणवेसा जेणेव सत्य
वाहदारगा तेणेव उवागया। ११२ तए णं ते सत्यवाहदारगा देवत्ताए गणियाए सद्धि जाणं दुरुहंति, दुरुहिता चंपाए नयरीए मज्झमझेणं जेणेव सुभूमिभागे
उज्जाणे जेणेव नंदा पोखरिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता पवहणाओ पचोरुइंति, पन्चोरुहिता नंदं पोक्खरिणि ओगाति ओगाहेत्ता जलमज्जणं करेंति, करेता जलकिड्डं करेंति, करेत्ता हाया देवदत्ताए सद्धि [नंदाओ पोक्खरिणीओ?] पन्चुत्तरंति, जेणेव थूणामंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता [थणामंडवं ? ] अणुप्पविसंति, अणुप्पविसिता सव्वालंकारभूसिया आसत्था वीसस्था सुहासणवरगया देवदत्ताए सद्धि तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं धृव-पुप्फ-वस्थ-गंध-मल्लालंकारं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभाएमाणा परि जेमाणा एवं च णं विहरति । जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा देवदत्ताए सद्धि विपुलाई काममोगाई भुंजमाणा विहरति । तए णं ते सत्यवाहदारगा पुव्वावरण्हकालसमयंसि देवदत्ताए गणियाए सद्धि थगामंडवाओ पडिमिक्खमंति, पडिणिक्खमिता हत्थसंगल्लीए सुभूमिभागे उज्जाणे बहसु आलिघरएसु य कयलिघरएसु य लताधरएसु य अच्छगवरएसु य पेच्छणधरएसु य पसाहणघरएसु य मोहणघरएसु य सालघरएसु य जालघरएसु य कुसुमधरएसु य उज्जाणसिरि पच्चणुभवमाणा विहरंति । सत्थवाहदारहिं मयूरीअंडगाणयणं तए णं ते सत्थवाहदारगा जेणेव से मालुयाकच्छए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं सा वणमयूरी ते सत्थवाहदारए एज्जमाणे पासइ, पासित्ता भीया तत्था महया-महया सद्देणं केकारवं विणिम्मुयमाणीविणिम्मुयमाणी मालुयाकच्छाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता एगंसि रक्खडालयंसि ठिच्चा ते सत्थवाहदारए मालुयाकच्छगं च अणिमिसाए दिट्टीए पेच्छमाणी चिट्ठइ। तए णं ते सत्थवाहदारगा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासो--"जहा णं देवाणुप्पिया! एसा वणमयूरी अम्हे एज्जमाणे पासित्ता भीया तत्था तसिया उबिग्गा पलाया महया-महया सद्देणं केकारव-जाव-रुक्खडालयंसि ठिच्चा अम्हे मालुयाकच्छयं च [ अणिमिसाए दिढोए ? ] पेच्छमाणी चिट्ठइ, तं भवियन्वमेत्य कारणेणं" ति कटु मालुयाकच्छयं अंतो अणुप्पविसंति । तत्य गं दो पुढे परियागए-जाव-मयूरी-अंडए पासित्ता अण्णमण्णं सद्दावेंति, सहावेत्ता एवं बयासी--"सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमे वणमयूरी-अंडए साणं जातिमंताणं कुक्कुडियाणं अंडएसु पक्खिवावित्तए। तए णं ताओ जातिमंताओ कुक्कुडियाओ एए अंडए सए य अंडए सएणं पंखवाएणं सारक्खमाणीओ संगोवेमाणीओ विहरिस्संति । तए णं अम्हं एत्थं दो कोलावणगा मयूरी-पोयगा भविस्संति" त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयम पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सए सए दासचेडए सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं बयासी--"गच्छह णं तुब्भे
देवाणुप्पिया! इमे अंडए गहाय सगाणं जातिमंताणं कुक्कुडीणं अंडएसु पक्खियह"-जाव-ते वि पक्खिवेति ।। ११४
तए णं ते सत्थवाहदारगा देवदत्ताए गणियाए सद्धि सुभुमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरि पच्चणुभवमाणा विहरित्ता तमेव जाणं दुरूढा समाणा जेणेव चंपा नयरी जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता देवदत्ताए गिहं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता देवदत्ताए गणियाए विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति, दलइत्ता सक्कारेंति सम्माणेति, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता देवदत्ताए गिहाओ पडिमिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव साई साइं गिहाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सकम्मसंपत्ता जाया यावि होत्था।
सागरदत्तपत्तेण संदेहेवसेण अंडयविणासो उवणओ य ११५ तत्थ णं जे से सागरदत्तपुत्ते सत्यवाहदारए से गं कल्लं पाउप्पभायाए रयगीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा
जलते जेणेव से वणमयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी-अंडयंसि संकिए कंखिए वितिगिछसमावण्णे भेयसमावण्णे कलुससमावण्णे किण्णं ममं एत्थ कोलावणए मयूरी-पोयए भविस्सइ उदाहु नो भविस्सइ ? ति कटु तं मयूरी-अंडयं अभिक्खणंअभिक्खणं उव्वत्तेइ परियत्तेइ आसारेइ संसारेड चालेइ फंदेइ घट्टेइ खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि टिट्टियावेइ। तए णं से मयूरी-अंडए अभिक्खणं-अभिक्खणं उव्वत्तिज्जमाणे परियत्तिज्जमाणे आसारिज्जमाणे संसारिज्जमाणे चालिज्जमाणे फैदिज्जमाणे घट्टिज्जमाणे खोभिज्जमाणे अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि टिट्टियावेज्जमाणे पोच्चडे जाए यावि होत्था। तए णं से सागरदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए अण्णया कयाइ जेणेव से मयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उबागच्छित्ता तं मयूरी-अंडयं पोच्चडमेव पासइ, 'अहो णं मम एत्थ कीलावणए मयूरी-पोयए न जाए' त्ति कटु ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए झियाइ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810