Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 724
________________ उज्झिययकहाणयं ४६९ तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे दोच्चाए पुढवीए अणंतरं उवट्टित्ता इहेव वाणियगामे नयरे विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे। तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। दारयस्स उज्झियय नामकरणं २२३ तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही तं दारगं जायमेत्तयं चेव एगते उक्कुरुडियाए उज्झावेइ, उज्झावेत्ता दोच्चं पि गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता अणुपुवेणं सारक्खमाणी संगोमाणी संवड्ढेइ। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो ठिइवडियं च चंदसूरदसणं च जागरियं च महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं करेंति। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे निव्वत्ते संपत्ते बारसाहे अयमेयारूवं गोणं गुणनिप्फण्णं नामधेज्जं करेंतिजम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव एगते उक्कुरुडियाए उज्झिए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए उज्झियए नामेणं। तए णं से उज्झियए दारए पंचधाईपरिग्गहिए, तं जहा--खीरधाईए मज्जणधाईए मंडणधाईए कीलावणधाईए अंकधाईए, जहा दढपइण्णे-जाव-निव्वाय-निव्वाघाय-गिरिकंदरमल्लीणे व्व चंपगपायवे सुहंसुहेणं विहरइ। विजयमित्तस्स लवणसमुद्दे मरणं २२४ तए णं से विजयमित्ते सत्यवाहे अण्णया कयाइ गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च-चउव्विहं भंडं गहाय लवणसमुई पोयवहणेण उवागए। तए णं से विजयमित्ते तत्थ लवणसमुद्दे पोयविवत्तीए निम्बुड्डभंडसारे अत्ताणे असरणे कालधम्मणा संजुत्ते । तए णं तं विजयमित्तं सत्थवाहं जे जहा बहवे ईसर-तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सत्थवाहा लवणसमुद्दपोयबिवत्तियं निम्बुडुभंडसारं कालधम्मुणा संजुत्तं सुणेति, ते तहा हत्यनिक्खेवं च बाहिरभंडसारं च गहाय एगंतं अवक्कमंति। तए णं सा सुभद्दा सत्यवाही विजयमित्तं सत्थवाहं लवणसमुद्दपोयविवत्तियं निब्बुडभंडसारं कालधम्मुणा संजुत्तं सुणेइ, सुणेत्ता महया पइसोएणं अप्फुण्णा समाणी परसुनियत्ता इव चंपगलया 'धस' त्ति धरणीयलंसि सव्वंहिं सन्निवडिया। तए णं सा सुभद्दा सत्यवाही मुहत्तंतरेणं आसत्था समाणी बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेहि सद्धि परिवुडा रोयमाणी कंदमाणी विलबमाणी विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स लोइयाइं मयकिच्चाई करेइ । तए णं सा सुभद्दा सत्यवाही अण्णया कयाइ लवणसमुद्दोत्तरणं च सत्यविणासं च पोयविणासं च पइमरणं च अणुचितेमाणीअणुचितेमाणी कालधम्मुणा संजुत्ता। सुमहासत्यवाही मरणे उज्झिययस्स गिहाओ निक्कासणं २२५ तए णं ते नगरगुत्तिया सुभदं सत्यवाहि कालगयं जाणित्ता उज्झियगं दारगं साओ गिहाओ निच्छु:ति, निच्छुभेत्ता तं गिहं अण्णस्स दलयंति । तए णं से उज्झियए दारए साओ गिहाओ निच्छुढे समाणे वाणियगामे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु जयखलएसु वेसघरएसु पाणागारेसु य सुहंसुहेणं परिवड्ढइ । तए णं से उज्झियए दारए अणोहट्टए अणिबारिए सच्छंदमई सइरप्पयारे मज्जप्पसंगो चोर-जूय-बस-दारप्पसंगी आए यावि होत्था। उज्झियस्स गणियासहवासो २२६ तए णं से उज्झियए अण्णया कयाइ कामज्झयाए गणियाए सद्धि संपलग्गे जाए यावि होत्था, कामज्झयाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ । तए णं तस्स मित्तस्स रणो अण्णया कयाइ सिरीए देवीए जोणिसूले पाउन्मए याबि होत्था, नो संचाएइ मिते राया सिरीए देवीए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए। गणियासत्तेणं मित्तनामेणं रण्णा कया उज्झिययविडंबणा २२७ तए णं से मित्ते राया अण्णया कयाइ उज्झियए दारए कामज्झयाए गणियाए गिहाओ निच्छुभावेइ, निच्छुभावेत्ता कामज्झयं गणियं अभितरियं ठवेइ ठवेत्ता कामज्झयाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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