Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 751
________________ ४९६ धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य जाहे नो संचाएंति अंजूए देवीए जोणिसूल उवसामित्तए, ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया। तए णं सा अंजू देवी ताए वेयणाए अभिभूया समाणी सुक्का भुक्खा निम्मंसा कट्ठाई कलुणाई वीसराई विलवइ । उवसंहारो ३४२ एवं खलु गोयमा ! अंजू देवी पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवितिविसेसं पच्चणुभवमाणी विहरइ।। अंजए आगामिभवपरूवणं ! ३४३ अंजू णं भंते ! देवी इओ कालमासे कालं किच्चा कहि गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! अंजू णं देवी नउई वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । एवं संसारो जहा पढमे तहा नेयव्वं-जाव-वणस्सई । सा णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता सव्वओभद्दे नयरे मयूरत्ताए पच्चायाहिए। से णं तत्थ साउणिएहि वहिए समाणे तस्थेव सव्वओभद्दे नयरे सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ । से णं तत्थ उम्मुक्कबालभाव तहारूवाणं थेराणं अंतिए पव्वइस्सइ । केवलं बोहि बुज्झिहिइ। पव्वज्जा। सोहम्मे । से णं तओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं कहि गच्छिहिइ ? कहि उवजिहिइ ? गोयमा! महाविदेहे वासे जहा पढमे-जाव-सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सम्बदुक्खाणमंतं काहिइ । विवा० अ०१०। २०. पूरणबालतवस्सिकहाणयं बेमेलसण्णिवेसे पूरणे गाहावई ३४४ चमरेणं भंते ! असुरिदेणं असुररप्णा सा दिव्या देविड्ढी दिव्या देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे किणा लद्धे ? पत्ते ? अभिसमण्णागए ? एवं खल गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुदीवे दीवे भारहे वासे विझगिरिपायमले बेभेले नामं सण्णिवेसे होत्था-- वण्णओ। तत्थ णं बेभेले सण्णिवेसे पूरणे नाम गाहावई परिवसइ--अड्ढे दित्ते-जाव-बहुजणस्स अपरिभूए यावि होत्था। परणस्स दाणामा पवज्जा . ३४५ तए णं तस्स पूरणस्स गाहावइस्स अण्णया कयाइ पुष्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था अस्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणे फलवित्तिविसेसे, जेणाहं हिरण्णणं वड्ढामि, सुवण्णेणं वड्ढामि, धणेणं वड्ढामि, धण्णेणं वड्ढामि, पुहि बड्ढामि, पसूहि वड्ढामि, विपुलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवाल-रत्तरयण-संतसारसावएज्जेणं अतीव-अतीव अभिवड्ढामि, तं कि णं अहं पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं-जाव-कडाणं कम्माणं एगंतसोक्खयं उवेहमाणे विहरामि? तं जाव ताव अहं हिरण्णेणं वड्ढामि-जाव-अतीव-अतीव अभिवड्ढामि, जावं च णं मे मित्त-नाति-नियग-सयण-संबंधि-परियणो आढाति परियाणाइ सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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