Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
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उम्बरदत्तकहाणयं
४८५ से णं भंते ! पुरिसे पुश्वभवे के आसि ? कि नामए वा किं गोत्ते वा ? कयरंसि गामसि वा नयरंसि वा? किं वा दच्चा कि वा भोच्चा किं वा समायरित्ता, केसि वा पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुष्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ?"
२९८
उबरदत्तस्स धण्णंतरिवेज्जभवकहा गोयमा ! इसमणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी--एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे बासे विजयपुरे नाम नयरे होत्था--रिद्धत्थिमियसमिद्धे० । तत्थ णं विजयपुरे नयरे कणगरहे नामं राया होत्था। तस्स णं कणगरहस्स रण्णो धण्णंतरी नामं वेज्जे होत्था--अटुंगाउन्वेयपाढए, तं जहा--१. कुमारभिच्चं २. सालागे ३. सल्लहत्ते ४. कायतिगिच्छा ५. जंगोले ६. भूविज्जे ७. रसायणे ८. वाजीकरणे, सिवहत्थे सुहहत्थे लहुहत्थे।
२९९
धण्णंतरिवेज्जेण मंसासणतेगिच्छ । तए णं से धण्णंतरी वेज्जे विजयपुरे नयरे कणगरहस्स रण्णो अंतउरे य, अणेस च बहूणं राईसर-तलवर-माइंबिय-कोडुबिय-इन्भसेटि-सेणावइ-सत्थवाहाणं, अण्णेसि च बहूणं दुबलाण य गिलाणाण य वाहियाण य रोगियाण य सणाहाण य अणाहाण य समणाण य माहणाण य भिक्खगाण य करोडियाण य कप्पडियाण य आउराण य--अप्पेगइयाणं मच्छमंसाई उवदिसइ, अप्पेगइयाणं कच्छभमंसाई, अप्पेगइयाणं गाहमंसाई, अप्पेगइयाणं मगरमसाई, अप्पेगइयाणं सुंसुमारमंसाई, अप्पेगइयाणं अयमंसाइं, एवं--एलय-रोज्झसूयर-मिग-ससय-गो-महिसमसाई उवदिसइ, अप्पेगइयाणं तित्तिरमंसाई उवदिसइ, अप्पेगइयाणं वट्टक-लावक-कवोय-कुक्कुड-मयूरमंसाइं उबदिसइ, अण्णेसि च बहूणं जलयर-थलयर-खहयरमाईणं मंसाई उदिसइ। अप्पणा वि णं से धणंतरी वेज्जे तेहि बहि मच्छमंसेहि य-जाव-मयूरमंसेहि य, अण्णेहि य बहूहि जलयर-थलयर-खहयर-मंसेहि य, मच्छरसएहि य-जाव-मयूररसएहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ।
निरयोववाओ ३०० तए णं से धण्णंतरी वेज्जे एयकम्मे एयप्पहाणे एवविज्जे एवसमायारे सुबहं पावं कम्म समज्जिगित्ता बत्तीसं वाससयाई परमाउं
पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णे ।
३०१
उंबरदत्तस्स वत्तमाणभवकहा तए णं सा गंगदत्ता भारिया जानिबुया यावि होत्था--जाया-जाया दारगा विणिघायमावति । तए णं तीसे गंगदत्ताए सत्थवाहीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुंडुबजागरियं जागरमाणीए अयं अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पणे---"एवं खलु अहं सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं सद्धि बहूई वासाई उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारग वा दारियं वा पयामि। तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ गं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासि अम्मयाणं माणुस्सए जम्मजीवियफले, जासिं मण्णे नियगकुच्छिसंभूयगाई थणवुद्धलुद्धयाई महुरसमुल्लावगाई मम्मणपजंपियाई थणमूला कक्खदेसभागं अभिसरमाणयाई मुद्धयाई पुणो य कोमलकमलोबमेहि हह गिव्हिऊण उल्छंगे निवेसियाई देति समुल्लावए सुमहुरे पुणो-पुणो मंजुलप्पणिए। अहं णं अधण्णा अपुण्णा अकयपूण्णा एसो एगतरमविन पसा। तं सेयं खल मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्टियाम्म सूर सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते सागरदत्तं सत्थवाहं आपुच्छित्ता सुबह पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय बहूहि मित्त-नाइ-नियगसयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं सद्धि पाडलिसंडाओ नपराओ पडिनिक्खमित्ता बहिया जेणेव उंबरदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणव उवागच्छित्ता, तत्थ णं उंबरदत्तस्स जक्खस्स महरिहं पुष्फच्चणं करेत्ता जाणुपायपडियाए ओयाइत्तए--जइ णं अहं देवाणुप्पिया। दारगं वा दारियं वा पयामि, तो णं अहं तुम्भं जायं च दायं च भायं च अक्खयनिहिं च अणुवढिस्सामि त्ति कटु ओवाइयं ओवाइणित्तए"--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते
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