Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
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सोरियवत्तकहाणय
४८९
सोरियदत्तस्स वत्तमाणभवकहा ३१५ तए णं सा समुद्ददत्ता भारिया निदू यावि होत्था--जाया-जाया दारगा विणि घायमावति । जहा गंगदत्ताए चिता, आपुच्छणा,
ओवाइयं, दोहलो-जाव-दारगं पयाया-जाव-जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोरियस्स जक्खस्स ओवाइयलद्धए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए सोरियदत्ते नामेणं। तए णं से सोरियवत्त वारए पंचधाईपरिग्गहिए-जाव-उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमेत्ते जोठवणगमणुप्पत्ते यावि होत्था। तए णं से समुद्दबत्ते अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते। तए णं से सोरियदत्ते दारए बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियहि सद्धि संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे समुद्ददत्तस्स नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूई लोइयाइं मयकिच्चाई करेइ, अण्णया कयाइ सयमेव मच्छंधमहत्तरगत्तं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से सोरियदत्ते दारए मच्छंधे जाए अहम्मिए-जाव-दुष्पडियाणंदे।
सोरियदत्तस्स दुच्चरिया ३१६ तए णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा कल्लाकल्लि एगट्टियाहिं जउणं महाणई ओगाहेंति, ओगा
हेत्ता बहूहि दहगलणेहि य दहमलणेहि य दहमद्दणेहि य दहमहणेहि य दहवहणेहि य दहपवहणेहि य मच्छंधुलेहि य पयंचुलेहि य पंचपुलेहि य जंभाहि य तिसराहि य भिसराहि य घिसराहि य विसराहि य हिल्लिरीहि य भिल्लिरीहि य गिल्लिरीहि य झिल्लिरीहि य जालेहि य गलेहि य कूडपासेहि य वक्कबंधेहि य सुत्तबंधेहि य बालबंधेहि य बहवे सहमच्छे-जाव-पडागाइपडागे य गेण्हंति एगट्ठियाओ भरेंति, भरेत्ता कूलं गाहेति, गाहेत्ता मच्छखलए करेंति, करेत्ता आयवंसि दलयंति। अण्णे य से बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा आयव-तत्तएहि मछेहि सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य रायमगंसि वित्ति कप्पेमाणा विहरति । अप्पणा वि णं से सोरियदत्ते बहूहि सोहमच्छेहि य-जाव-पडागाइपडागेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरह।
३१७ तए णं तस्स सोरियवत्तस्स मच्छंधस्स अण्णया कयाइ ते मच्छे सोल्ले य तलिए य भज्जिए य आहारेमाणस्स मच्छकंटए गलए
लग्गे यावि होत्था। तए णं से सोरियदत्ते मच्छंधे महयाए वेयणाए अभिभए समाणे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--गच्छह गं तुम्भे देवाणुप्पिया! सोरियपुरे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु य महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा एवं वयह"एवं खलु देवाणुप्पिया! सोरियदत्तस्स मच्छकंटए गले लग्गे । तं जो णं इच्छइ वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुयपुत्तो वा तेगिच्छिओ वा तेगिच्छियपुत्तो वा सोरियवत्तस्स मच्छियस्स मच्छकंटयं गलाओ नीहरित्तए, तस्स णं सोरियदत्ते विउलं अस्थसंपयाणं दलयई"। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा-जाव-उग्घोसंति । तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य इमं एयारूवं उग्घोसणं निसामेंति, निसामेत्ता जेणेव सोरियदत्तस्स गेहे जेणेव सोरियदत्त मच्छंधे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता बहूहि उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मियाहि य पारिणामियाहि य बुद्धीहि परिणामेमाणा-परिणामेमाणा बमणेहि य छड्डणेहि य ओवीलणेहि य कवलग्गाहेहि य सल्लुद्धरणेहि य विसल्लकरणेहि य इच्छंति सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स मच्छकंटयं गलाओ नीहरित्तए, नो संचाएंति नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा। तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य जाहे नो संचाएंति सोरियवत्तस्स मच्छंधस्स मच्छकंटगं गलाओ नीहरित्तए, ताहे संता तंता परितंता जामेव विसं पाउम्भूया तामेव दिसं पडिगया।
ध. क. ६२
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