Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 709
________________ धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो तए णं से धणे सत्थवाहे रोहिणि एवं वयासी-"कहं गं तुम पुत्ता ! ते पंच सालिअक्खए सगडि-सागडेणं निज्जाइस्ससि ?" तए णं सा रोहिणी धणं सत्थवाहं एवं वयासी-"एवं खलु ताओ ! तुम्भे इओ अतीते पंचमे संवच्छरे इमस्स मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ पंच सालिअक्खए गेण्हह, गेण्हित्ता ममं सद्दावेह, सद्दावेत्ता एवं बयासी-- 'तुमं णं पुत्ता मम हत्थाओ इमे पंच सालिअक्खए गेण्हाहि, अणुपुब्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि। जया णं अहं पुत्ता ! तुम इमे पंच सालिअक्खए जाएज्जा तया णं तुम मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जाएज्जासि' त्ति कटु मम हत्थंसि पंच सालिअक्खए दलयह। तं भवियव्वं एत्थ कारणेणं । तं सेयं खलु मम एए पंच सालिअक्खए सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए संवड्ढेमाणीए-जाव-बहवे कुंभसया जाया तेणेव कमेण । एवं खलु ताओ! तुब्भे ते पंच सालिअक्खए सगडि-सागडेणं निज्जाएमि । तए णं से धणे सत्थवाहे रोहिणीयाए सुबहुयं सगडि-सागडं दलाति। तए णं से रोहिणी सुबहु सगडि-सागडं गहाय जेणेव सए कुलघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोट्ठागारे विहाडेइ, विहाडित्ता पल्ले उभिदइ, उभिदित्ता सगडि-सागडं भरेइ, भरेता रायगिह नगरं मझमझेणं जेणेव सए गिहे जेणेव धणे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छइ। तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मूह-महापह-पहेसु बहुजणो अण्णमण्णं एवमाइक्खइ--धण्णे णं देवाणुप्पिया! धणे सत्यवाहे, जस्स णं रोहिणीया सुण्हा पंच सालिअक्खए सागडि-सागडेणं निज्जाएइ। १५२ तए णं से धणे सत्यवाहे ते पंच सालिअक्खए सगडि-सागडेणं निज्जाइए पासइ, पासित्ता हतुढे पडिच्छइ, पडिच्छित्ता तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवम्गस्स पुरओ रोहिणीयं सुण्हं तस्स कुलघरस्स बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य आपुच्छणिज्जं पडिपुच्छणिज्ज मेढि पमाणं आहारं आलंबणं चक्खू, मेढीभूयं पमाणभूयं आहारभूयं आलंबणभूयं चक्खुभूयं सव्वकज्ज वड्ढावियं पमाणभूयं ठवेइ। रोहिणि पडुच्च उवणओ १५३ एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवमायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, पंच से महव्वया संवढिया भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जेजाव-चाउरतं संसारकतारं वीईवइस्सइ--जहा व सा रोहिणीया ।' णायाधम्मकहाओ सु० १ अ०७ । १ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा जह सेट्ठी तह गुरुणो, जह नाइ-जणो तहा समणसंघो। जह बहुया तह भव्वा, जह सालिकणा तह बयाई॥१॥ उज्झिया जह सा उज्झियनामा, उज्झियसाली जहत्थमभिहाणा। पेसणगारित्तेणं, असंखदुक्खक्खणी जाया ॥२॥ तह भवो जो कोई, संघसमक्खं [च] गुरु-विदिण्णाई। पडिबज्जिउं समुज्झइ, महब्बयाई महामोहा ॥३॥ सो इह चेव भवम्मि, जणाण धिक्कार-भायणं होइ। परलोए उ दुहत्तो, नाणा-जोणीसु संचरइ ॥४॥ भोगवती जह वा भोगवती, जहत्थनामोवभुत्तसालिकणा । पेसणविसेसकारित्तणेण पत्ता दुहं चेव ॥५॥ तह जो महव्वयाई, उवभुंजइ जीविय त्ति पालितो। आहाराइसु सत्तो, चत्तो सिवसाहणिच्छाए ॥६॥ सो एत्य जहिच्छाए, पावइ आहारमाइ लिंगित्ता। बिउसाण नाइपुज्जो, परलोयंसी दुही चेव ॥७॥ रक्खिया जह वा रक्खियवहुया, रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा। परिजणमण्णा जाया, भोगसुहाइं च संपत्ता ॥८॥ तह जो जीवो सम्मं, पडिवज्जित्ता महव्वए पंच । पालेइ निरइयारे, पमाय-लेसं पि वज्जतो॥९॥ सो अप्पहिएक्करई, इहलोयम्मि वि विहिं पणयपओ। एगंतसुही जायइ, परम्मि मोक्खं पि पावेइ ॥१०॥ रोहिणी जह रोहिणी उ सुण्हा, रोवियसाली जहत्थमभिहाणा। वढित्ता सालिकणे, पत्ता सव्वस्स सामित्तं ॥११॥ तह जो भब्वो पाविय, वयाइ पालेइ अप्पणा सम्म। अण्णेसि वि भव्वाणं, देइ अणेगेसि हियहेउं ॥१२॥ सो इस संघपहाणो, जुगप्पहाणो ति लहइ संसदं । अप्पपरेंसि कल्लाण-कारओ गोयमपहु व्व ॥१३॥ तित्थस्स बुड्ढिकारी, अक्खेवणओ कुतित्थियाईणं। विउस-नरसेविय-कमो, कमेण सिद्धि पि पावेइ ॥१४॥ णायाधम्मकहाओ सु० १ अ०७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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