Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
View full book text
________________
६. आसणायं
हत्यिसीसनगरे संजता नावावणिया
१५४ तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था-- वण्णओ ।
तत्थ णं कणगकेऊ नामं राया होत्था--वण्णओ ।
तत्थ णं हत्थिसीसे नयरे बहवे संजत्ता नावावाणियगा परिवसंति-- अड्ढा - जाव - बहुजणस्स अपरिभूया यावि होत्या । संजता नावावणियाणं समुद्दमज्झे उबद्दयो
१५५ लए पंसि संजता नावावाणियगाणं अष्णया कमाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूये मिहोकहा-समुल्लाचे समुप्यज्जित्था - "सेयं खलु अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दे पोयवहणेणं ओगाहेत्तए" त्ति कट्टु जहा अरहन्नए- जाब- लवणसमुद्द अणेगाई जोयणसयाई ओगाढा यावि होत्था ।
तए पंसि संजता नावावाणियगाणं लवणसमुहं अगंगाई जोवणतपाई ओगाडानं समाजाणं बहूणि उप्पायसमाई पाउब्वाई, तं जहा-अकाले गजिए अकाले बिज्जुए अकाले पणियस कालियवाए व समुत्थिए ।
लए सा नावा तेणं कालियवाएणं आणिज्यमाणी आतुगिज्नमाणी संचालिज्जमाणी-संचालिज्जमाणी संखोजिमाची संखोहिन माणी तत्थेव परिभमइ ।
नावानिज्जामयरस मूढलं लसन्तं च
१५६ तए णं से निज्जामए नटुमईए नट्टसुईए नटुसण्णे मूढदिसाभाए जाए यावि होत्था--न जाणइ कयर देसं वा दिसं वा विदिसं वा पोयवहणे अवहिए ति कट्टु ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए झियायइ ।
तए गं से बहने कुच्छधारा व कष्णधारा व गाय संजतानावा याणियगा य जेणेव से निम्नामए तेथेच उपागच्छति, उवागच्छित्ता एवं वयासी -- “किण्णं तुमं देवाणुप्पिया ! ओहयमणसंकरपे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए झियायसि ? "
तए णं से निज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गन्भेल्लगा य संजत्ता नावावाणियगा य एवं वयासी - "एवं खलु अहं बेवाणुपिया नडुमईए नई नसणे मूढदिसामाए जाए यावि होत्या जागामि परदेसवा दिया विदिसं वा पोहणे अवहिए कि त ओमणरूप्ये करतलपत्यमुहे अट्टानोवगएशियामि।"
तए णं से कुच्छिधारा य कण्णधारा य गन्भेल्लगा य संजत्ता नावावाणियगा य तस्स निज्जामयत्संतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म भीया तथा उव्विग्गा उब्विग्गमणा व्हाया कयबलिकम्मा करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु बहूणं इंदाण य खंधाण य रुद्दाण य सिवाण य वेसमणाण य नागाण य भूयाण य जक्खाण य अज्ज कोट्टकिरियाण य बहूणि उवाइय-सयाणि वायमाणा उवायमाणा चिट्ठति ।
लए णं से निज्जामए तो मुहतरस्स लमईएसईए लहसने अमूढदिसामाए जाए यादि होत्या ।
१५७ तएण से निज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य कष्णधारा य गभेल्लगा य संजत्तानावावाणियगा य एवं वयासी -- “ एवं खलु अहं देवाप्पिया ! लद्धमईए लद्धसुईए लद्धसण्णे अमूढदिसाभाए जाए। अम्हे णं देवाणुप्पिया ! कालियदीवंतेणं संबूढा । एस णं कालियदोवे आल"।
संजतानावावणियाणं कालियदीवे आस-पेच्छर्ण
१५८ तए णं ते कुच्छिधारा य कण्णधारा य गन्भेल्लगा य संजत्ता नावावाणियगा य तस्स निज्जामगस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्चा हट्टा पक्खिणाणुकूलेणं वाणं जेणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेंति, लंबेत्ता एगट्टियाहि कालियदीव उत्तरति । तत्थ णं बहवे हिरण्णागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासंति, किं ते ?.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/993a06650af00a3c8b134f814b00537921e08704e4f6d65c6b8d143250994866.jpg)
Page Navigation
1 ... 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810