Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 714
________________ मियापुत्तकहाणयं गंधेसु य भय-पावएसु घाणविसयमवगएसु । तुट्ठण व रु?ण व, समणेण सया न होयध्वं ॥१८॥ रसेसु य भद्दय-पावएसु जिभविसयमुवगए। तु?ण व रु?ण ब, समणेण सया न होयध्वं ॥१९॥ फासेसु य भद्दय-पावएसु कायविसयमवगएसु । तु?ण व रु?ण ब, समणेण सया न होयव्वं ॥२०॥ १७३ एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं-जाव-संपत्तेणं सत्तरसमस नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ।' ---त्ति बेमि॥ णायाधम्मकहाओ सु० १ अ० १७ । १. वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथाजह सो कालियदीवो, अणुवमसोक्खो तहेव जइ-धम्मो। जह आसा तह साहू, बणिय व्वऽणुकलकारिजणा ॥१॥ जह सद्दाइ-अगिद्धा, पत्ता नो पासबंधणं आसा। तह विसएसु अगिद्धा, बझंति न कम्मणा साहू ॥२॥ जह सच्छंदविहारो, आसाणं तह इहं वरमुणीणं । जर-मरणाइ-विवज्जिय सायत्ताणंदनिव्वाणं ॥३॥ जह सद्दाइसु गिद्धा, बद्धा आसा तहेव विसयरया । पार्वेति कम्मबंध, परमासुह-कारणं घोरं ॥४॥ जह ते कालियदीवा, णीया अण्णस्थ दुहगणं पत्ता । तह धम्म-परिन्भट्ठा, अधम्मपत्ता इहं जीवा ॥५॥ पार्वेति कम्म-नरवइ-वसया संसारवाहियालीए । आसप्पमद्दएहि व, नेरड्याईहि दुक्खाई ॥६॥ १०. मियापुत्तकहाणयं मियग्गामे विजयराजपुत्ते मियापुत्ते १७४ समणेणं भगवया महावीरेणं-जाब-संपत्तेणं दुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णसा, तं जहा-- संगहणी-गाहा १. मियउत्ते य २. उज्झियए, ३. अभग्ग ४. सगडे ५. बहस्सई ६. मंदी। ७. उबर ८. सोरियदत्ते य, ९. देवदत्ता य १०. अंजू य ॥१॥ १७५ तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी--एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं मियग्गामे नामं नयरे होत्था-- वण्णओ। तस्स णं मियग्गामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए चंदणषायवे नाम उज्जाणे होत्था--सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे-- वण्णओ। तत्थ णं सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था--चिराइए जहा पुण्णभद्दे । तत्थ णं मियग्गामे नयरे विजए नाम खत्तिए राया परिवसइ--वण्णओ। तस्स णं विजयस्स खत्तियस्स मिया नाम देवी होत्था--अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा--वण्णओ। मियापुत्तस्स जातिअंधआइत्तं १७६ तस्स णं विजयस्स खत्तियस्स पुत्ते मियाए देवीए अत्तए मियापुत्ते नाम बारए होत्था--जातिअंधे जातिमूए जातिबहिरे जातिपंगुले हंडे य वायब्वे । नस्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी बा नासा वा। केवलं से तेसि अंगोबंगाणं आगिती आगितिमेत्ते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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