Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 713
________________ ४५८ धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो १६७ तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा दक्खिणाणुकूलेणं बाएणं जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेति, लंबेत्ता ते आसे उत्तारेति, उत्तारेत्ता जेणेव हत्थिसीसे नयरे जेणेव कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं बद्धाति ते आसे उवणेति। १६८ तए णं से कणगकेऊ राया तेसि संजत्ता-नाबावाणियगाणं उस्सुकं वियरइ, सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से कणगकेऊ राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ । १६९ तए णं से कणगकेऊ राया आसमद्दए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी--"तुम्भे णं देवाणुप्पिया! मम आसे विणएह"। तए णं ते आसमद्दगा 'तह' ति पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता ते आसे बहूहि मुहबंधेहि य कण्णबंधेहि य नासाबंधेहि य वालबंधेहि य खुरबंधेहि य कडगबंधेहि य खलिणबंधेहि य ओवीलणाहि य पडयाणेहि य अंकणाहि य वेत्तप्पहारेहि य लयप्पहारेहि य कसप्पहारेहि य छिवप्पहारेहि य विणयंति, विणइत्ता कणगकेउस्स रणो उवणेति । तए णं से कणगकेऊ राया ते आसमद्दए सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ । १७० तए णं ते आसा बाहिं मुहबंधेहि य-जाव-छिवप्पहारेहि य बहूणि सारीर-माणसाई दुक्खाइं पार्वति । मुच्छियआसे पडुच्च उवणओ १७१ एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइए समाणे इ8सु सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु सज्जइ रज्जइ गिज्मइ मुज्झइ अझोववज्झइ, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य होलणिज्जे-जाव-चाउरंतं संसारकतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ । समग्गदिदंतस्स उवणयगाहाओ १७२ कल-रिभिय-महुर-तंती-तल-ताल-वंस-कउहाभिरामेसु। सद्देसु रज्जमाणा, रमंति सोइंबिय-वसट्टा ॥१॥ सोइंदिय-दुद्दतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो। दीविग-रुयमसहतो, वहबंधं तित्तिरो पत्तो ॥२॥ यण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-गव्विय-विलासियगईसु । रुवेसु रज्जमाणा, रमंति चक्खिदिय-वसट्टा ॥३॥ चक्खिंदिय-दुईतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो। जं जलशूमि जलते, पडइ पयंगो अबुद्धीओ ॥४॥ अगरुवर-पवरधूवण-उउयमल्लाणुलेवणविहीसु । गंधेसु रज्जमाणा, रमंति, धाणिदिय-वसट्टा ॥५॥ घाणिदिय-दुईतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो। जं ओसहिगंधेणं, बिलाओ निद्धावई उरगो॥६॥ तित्त-कडुयं कसायं, महुरं बहुखज्ज-पेज्ज-लेज्मेसु । आसायंमि उ गिद्धा, रमंति जिभिदिय-वसट्टा ॥७॥ जिभिदिय-दुइंतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो। जं गललग्गुक्खित्तो, फुरइ थलविरेल्लिओ मच्छो ॥८॥ उउ-भयमाणसुहेसु य, सविभव-हिययमण-निव्वुइकरेसु । फासेसु रज्जमाणा, रमंति फासिदिय-वसट्टा ॥९॥ फासिदिय-दुद्दतत्तणस्स अह एतिओ हवइ दोसो। जं खणइ मत्थयं कुंजरस्स लोहंकुसो तिक्खो॥१०॥ कल-रिभिय-महुर-तंती-तल-ताल-वंस-कउहाभिरामेसु । सद्देसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥११॥ थण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-गब्बिय-विलासियगईसु । रुवेसु जे न रत्ता, वसट्टमरणं न ते मरए ॥१२॥ अगरुवर-पवर-धूवण-उउयमल्लाणुलेवणविहीसु । गंधेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥१३॥ तित्त-कडुयं कसायं महुरं बहुखज्ज-पेज्ज-लेझेसु। आसायंमि न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥१४॥ उउ-भयमाणसुहेसु य, सविभव-हिययमण-निव्वुइकरेसु । फासेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥१५॥ सद्देसु य भद्दय-पावएसु सोयविसयमुवगएसु। तुट्ठण व रु?ण व, समणेण सया न होयव्वं ॥१६॥ रुबेसु य भद्दय-पावएसु चक्खुविसयमवगएसु। तु?ण व रु?ण व, समणेण सया न होयब्वं ॥१७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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