Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
च्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुम्भे वयह" ति कट्ट थेरे भगवते वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता-जाव-पव्वइए-जाव-बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता भत्तं पच्चक्खाइत्ता, मासियाए संलेहणाए [अप्पाणं झोसेत्ता? ], सर्द्धि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उबवण्णे । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। तस्स णं धणस्स देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिई।
धणस्स महाविदेहे सिद्धी १०४ से गं धणे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं चइता महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ-जाव-सव्व
दुक्खाणमंत करेहिइ।
धणणायस्स पुणोनिगमणं १०५ जहा णं जंबू ! धणेण सत्थवाहेणं नो धम्मो ति बा तवो ति बा कयपडिकया इ वा लोगजत्ता इ वा नायए इ वा घाडियए
इ वा सहाए इ वा सुहि त्ति वा विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागे कए, नण्णत्थ सरीरसारक्खणट्टाए । एवामेव जंबू ! जे णं अम्हं निग्गंथे वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पम्वइए समाणे ववगय-हाणुमद्दण-पुप्फ-गंध-मल्लालंकार-विभूसे इमस्स ओरालिय-सरीरस्स नो वण्णहे वा नो रूबहेड वा नो बलहेउवा नो विसयहेउं वा तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आहारमाहारेइ, नण्णत्थ नाणदसणचरिताणं वहणट्ठयाए, से गं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमसणिज्जे पूणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणिज्जे कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासणिज्जे भवइ ।। परलोए वि य शं नो बहूणि हत्यच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं हियय उप्पायणाणि य वसणुप्पायणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दोहमद्धं चाउरतं संसारकतारं वोईवइस्सइ-जहा व से धणे सत्यवाहे ।'
णायाधम्मकहाओ सु० १, अ० २ ।
६. मयूरीअंडणायं
चंपाए मयूरीए अंडसेवणं १०६ तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था--वण्णओ।
तोसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए सुभूमिभागे नाम उज्जाणे--सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे सुरम्मे नंदणवणे इव सुह-सुरभिसीयलच्छायाए समणुबद्ध। तस्स णं सुभूमिभागस्त उज्जाणस्स उत्तरओ एगदेसम्मि मालुयाकच्छए होत्था--वग्णओ। तस्थ णं एगा बणमयूरी दो पुट्ठ परियागए पिटुंडी-पंडुरे निव्वणे निरुवहए भिण्णमुट्टिप्पमाणे मयूरी-अंडए पसवइ, पसवित्ता सएणं
पक्खवाएणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संविट्ठ माणी विहरह। १ वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा सिवसाहणेसु आहार-विरहियो जं न वट्टए देहो । तम्हा धणो ब्व विजयं, साहू तं तेण पोसेज्जा ॥१॥
णायाधम्मकहाओ सु० १ अ० २।
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