Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
View full book text
________________
विजयतकरणाय
४४३
तए णं सा भद्दा धणं सस्थवाह एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी तुसिणीया
परम्मुही संचिट्टइ। ९९ तए णं से धणे सत्थवाहे भई भारिय एवं वयासी--"किष्णं तुझं देवाणुप्पिए ! न तुट्टी वा न हरिसो वा नाणंदो वा, जं मए
सएणं अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पा विमोइए"। तए णं सा भद्दा धणं सत्थवाहं एवं वयासी--"कहं णं देवाणुप्पिया! मम तुट्ठी वा हरिसो वा आणंदो वा भविस्सइ? जणं तुमं मम पुत्तघायगस्स पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडणीयस्स पच्चामित्तस्स ताओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेसि"। तए णं से धणे सत्थवाहे भई भारियं एवं वयासी-"नो खलु देवाणुप्पिए ! धम्मो त्ति वा तवो त्ति वा कय-पडिकया इ वा लोगजत्ता इ वा नायए इ वा घाडियए इ वा सहाए इवा सुहि त्ति वा [विजयस्स तक्करस्स? ] ताओ बिपुलाओ असणपाण-खाइम-साइमाओ संविभागे कए, नष्णत्थ सरीरचिताए। तए णं सा भद्दा धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणी हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिया-जाव-हरिसवस-विसप्पमाणहियया आसणाओ अब्भुटठेड, अब्भुत्ता कंठाकंठि अवयासेइ खेमकुसलं पुच्छइ, पुच्छित्ता पहाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता विपुलाइं भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ ।
१००
विजय-णायस्स निगमणं तए णं से विजए तबकरे चारगसालाए तेहि बंधहि य बहेहि य कसप्पहारेहि य छिवापहारेहि य लयापहारेहि य तण्हाए य छहाए य परज्झमाणे कालमासे कालं किच्चा नरएसु नेरइयत्ताए उबवणे । से गं तत्थ नेरइए जाए काले कालोभासे गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए परमकण्हे वण्णेणं । से णं तत्थ निच्चं भीए निच्चं तत्थे निच्चं तसिए निच्चं परमऽसुहसंबद्ध नरगगतिवेयणं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ। से गं ताओ उट्टित्ता अणादीयं अणवदग्गं दोहमद्धं चाउरतं संसारकतारं अणुपरियट्टिस्सइ।
धणनायस्स निगमणं १०१ एवामेव जंबू ! जो णं अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए
समाणे विपुलमणिमोत्तिय-धण-कणग-रयणसारेणं लुम्भइ, सो वि एवं चेष ।
१०२
रायगिहे थेरागमणं तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा-जाव-पुष्वाणुपुटिव चरमाणा गामाणुगामं दूइज्जमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा, जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। परिसा निग्गया धम्मो कहिओ।
धणस्स पव्वज्जा
. . १०३ तए णं तस्स धणस्स सत्यवाहस्स बहुजणस्स अंतिए एयमट्ट सोच्चा निसम्म इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे
समुप्पज्जित्था--"एवं खल थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा इहमागया इहसंपत्ता। तं गच्छामि? णं थेरे भगवंते वदामि नमसामि" [एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता? ] हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए पायविहारचारेणं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ। तए णं थेरा भगवंतो धणस्स विचित्तं धम्ममाइक्खंति । तए णं से धणे सत्यवाहे धम्म सोच्चा एवं वयासी-- "सहहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं। रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । अन्भुटेमि णं भंते! निगंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/00a7ed463608c6668f4447011bc81d1e6fe5b9e1eaac866c3ba1feb598462945.jpg)
Page Navigation
1 ... 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810