Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
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८. रोहिणीणायं
राहगिहे धणसत्थवाहो १३२ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था। सुभूमिमागे उज्जाणे ।
तत्थ णं रायगिहे नयरे धणे नामं सत्यवाहे परिवसइ--अड्ढे-जाव-अपरिभूए। भद्दा भारिया-अहीणपंचिदियसरीरा-जावसुरुवा। तस्स णं धणस्स सत्यवाहस्स पुत्ता भद्दाए भारियाए अत्तया चत्तारि सत्थवाहदारगा होत्था, तं जहा--धणपाले धणदेवे धणगोवे धणरक्खिए। तस्स णं धणस्स सत्यवाहस्स चउण्हं पुत्ताणं भारियाओ चत्तारि सुण्हाओ होत्या, तं जहा--उज्झिया भोगवइया रक्खिया रोहिणिया।
धणसत्यवाकया च उण्हं सुण्हाण परिक्खा १३३ तए णं तस्स धणस्स सत्थवाहस्स अण्णया कयाइ पुव्वरतावरत्तकालसमयंसि इमेयारवे अज्झत्यिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्ये
समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं रायगिहे नयरे बहूणं ईसर-तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सस्थवाहपभितीणं सयस्स य कुडुंबस्स बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कोडुबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढी पमाणं आहारे आलंबणे चक्खू, मेढीभूते पमाणभूते आहारभूते आलंबणभूते चक्खूभूए सव्वकज्जवड्ढावए, तं न नज्जइ णं मए गयंसि वा चुयंसि वा मयंसि वा भग्गंसि वा लुग्गंसि वा सडियंसि वा पडियंसि वा विदेसत्थंसि वा विप्पवसियंसि वा इमस्स कुडुंबस्स के मन्ने आहारे वा आलंबे वा पडिबंधे वा भविस्सइ?, तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्स-रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते विपुलं असणं पाणं खाइम साइमं उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं, चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गं आमंतेत्ता तं मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणं चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवगं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं धूव-पुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स, चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ चउण्हं सुण्हाणं परिक्खणट्ठयाए पंच-पंच सालिअक्खए दलइत्ता जाणामि ताव का किह वा सारक्खेइ वा? संगोवेइ वा ? संवड्ढेइ वा? एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं, चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गं आमंतेइ, तओ पच्छा व्हाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए तेणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गेणं सद्धि तं विपुलं असणं पागं खाइमं साइम आसादेमाणे जाव-सक्कारेइ, सकारेत्ता तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता जेठं सुण्डं उज्झियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--"तुमं गं पुत्ता! मम हत्थाओ इमे पंच सालिअक्खए गेण्हाहि, अणुपुब्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि । जया णं अहं पुत्ता! तुम इमे पंच सालिअक्खए जाएज्जा, तया णं तुम मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जाएज्जासि" ति कटु सुण्हाए हत्थे दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ ।
उज्झियाए सालीणं उज्झणं १३४ तए णं सा उझिया धणस्स 'तह त्ति एयमलै पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता धणस्स सत्थवाहस्स हत्थाओ ते पंच सालिअक्खए गेहई'
गेण्हित्ता एगंतमवक्कमइ, एगंतमवक्कमियाए इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु तायाणं कोट्रागारंसि बहवे पल्ला सालोणं पडिपुण्णा चिठ्ठति, तं जया णं मम ताओ इमे पंच सालिअक्खए जाएसइ, तया णं अहं पल्लंतराओ अण्णे पंच सालिअक्खए गहाय दाहामि" त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता ते पंच सालिअक्खए एगंते एडेइ, सकम्मसंजुत्ता जाया यावि होत्था।
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