Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 628
________________ अम्मडपरिवाया कहाणयं ३७३ "नमो त्यु णं अरहंताणं-जाव-संपत्ताणं, नमो त्यु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स-जाव-संपाविउकामस्स, नमो स्थु णं अम्मडस्स परिव्वायगस्स अम्हं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स। पुचि णं अम्हेहि अम्मडस्स परिव्वायगस्स अंतिए थूलगपाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए, मुसावाए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, इयाणि अम्हे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामो जावज्जीवए, एवं-जाव-सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं कोहं माणं मायं लोहं पेज्जं दोसं कलहं अभक्खाणं पेसुण्णं परपरिवायं अरइरई मायामोसं मिच्छादसणसल्लं अकरणिज्जं जोगं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं असणं पाणं खाइमं साइमं चउम्विहं पि आहारं पच्चक्खामो जावज्जीवाए। जं पि य इमं सरीरं इठे कंतं पियं मणुण्णं मणाणं पेज्जं थेज्जं वेसासियं संमयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं मा णं सीयं मा णं उन्हं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं वाला मा णं चोरा मा णं बंसा मा णं मसगा मा णं वाइयपित्तियसिभियसंनिवाइयविविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु-त्ति कटु एयंपि णं चरमेहिं ऊसासणीसासहि वोसिरामि" त्ति कटु संलेहणाझूसणाझूसिया भत्तपाणपडियाइक्खिया पाओवगया कालं अणवकखमाणा विहरंति।। तए णं ते परिवाया बहूई भत्ताई अणसणाए छेदेति छेदित्ता आलोइयपडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववण्णा । तहि तेसि गई दससागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, परलोगस्स आराहगा, सेसं तं चेव । अम्मडस्स घरसयवसहि-आहारनिरूवणं ३३१ बहुजणे णं भंते ! अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं परूवेइ-- "एवं खलु अम्मडे परिवायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ, से कहमेयं भंते ! एवं"! "गोयमा! जं णं से बहुजणे अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-एवं परुवेइ-‘एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे-जाव-घरसए वसहि उवेई, सच्चे णं एसमठे अहं पिणं गोयमा! एवमाइक्खामि-जाव-एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए-जाव-वसहि उवेइ।" "से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-अम्मडे परिव्वायए-जाव-वसहि उवेइ ?" "गोयमा! अम्मडस्स गं परिव्वायगस्स पगइभद्दयाए-जाव-विणीययाए छठंछंठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढे बाहाओ पगिज्निय पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहि अज्झवसाणेहि पसत्याहिं लेसाहि विसुजममाणीहि अन्नया कयाइ तदावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहावूहामग्गणगवेसणं करेमाणस्स वीरियलद्धीए वेवियलद्धीए ओहिणाणलद्धीए समुप्पण्णाए जणविम्हावणहेउं कंपिल्लपुरे णगरे घरसए-जाव-वसहि उवेइ, से तेणठेणं गोयमा! एवं वृच्चाईअम्मडे परिवायए कपिल्लपुरे णयरे घरसए-जाव-वसहि उवेइ"। अम्मडस्स समणोवासयत्तं ३३२ पह णं भंते ! अम्मडे परिवायए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ? णो इणठे समठे, गोयमा ! अम्मडे णं परिवायए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे-जाव-अप्पाणं भावमाणे विहरइ, णवरं 'ऊसियफलिहे अवंगुदुवारे चियत्तंतेउरघरदारपवेसी [क्वचित्-चियत्तघरतेउरपवेसो]' एयं णं वुच्चइ। अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए-जाव-परिग्गहे गवरं सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवए। अम्मडस्स णं परिवायगस्स णो कप्पइ अक्खसोयप्पमाणमेत्तं पि जलं सयराहं उत्तरित्तए, णण्णत्थ अद्धाणगमणेणं । अम्मडस्स णं णो कप्पइ सगडं वा, एवं तं चेव भाणियव्वं-जाव-णण्णत्थ एगाए गंगामट्टियाए । अम्मडस्स गं परिवायगस्स णो कप्पइ आहाकम्मिए वा उद्देसिए वा मीसजाए इ वा अज्झोयरए इ वा पूइकम्मे इ वा कीयगडे इ वा पामिच्चे इ वा अणिसिट्टे इ वा अभिहडे इ वा ठइत्तए वा रइत्तए वा कंतारभत्ते इ वा दुन्भिक्खभत्ते इ वा गिलाणभत्ते इ वा वद्दलियाभत्ते इ वा पाहुणगभत्ते इ वा भोत्तए वा पाइत्तए वा। अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ मूलभोयणे वा-जाव-बीयभोयणे वा भोत्तए वा पाइत्तए वा। अम्मडस्स गं परिब्वायगस्स चउब्धिहे अणटादंडे पच्चक्खाए जावज्जीवाए । तं जहा--अवज्झाणायरिए पमायायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे। अम्मडस्स कप्पइ मागहए अद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए-से वि य वहमाणए, णो चेव णं अवहमाणए-जाव-से वि य परिपूए, जो - चेव णं अपरिपूए; से वि य 'सावज्जे' त्ति काऊं णो चेव णं अणवज्जे, से वि ये 'जीवा' ति काउं णो चेव णं अजीव, से वि - य "दिण्णे' णो चेव णं अविष्णे, से वि य हत्थपायचरुचमसपक्खालणटयाए पिबित्तए वा, णो चेव णं सिणाइत्तए। अम्मडस्स कप्पड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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