Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 637
________________ ३८२ धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो इवा, जक्खमहे इ वा, भूयमहे इ वा, कूवमहे इ वा, तडागमहे इ वा , नईमहे इ वा, दहमहे इ वा, पब्वयमहे इ वा, रूक्खमहे इवा, चेइयमहे इक, थूभमहे इ वा, जग्णं एते बहवे, उग्गा, भोगा, राइण्णा, इक्खागा, णाया, कोरवा, खत्तिया, खत्तियपुत्ता, भडा, भडपुत्ता, जोहा पसत्यारो मल्लई लेच्छई लेच्छईपुत्ता अग्गे य बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेटि-सेगावइसेणावइपुत्ता-सत्यवाहप्पभितयो व्हाया करबलिकम्मा जहा ओक्वाइए-जाव-खत्तियकुंडग्गामे नयरे मझमझेणं निग्गछंति ?-एवं संपेहेइ, संपेहेता कंचुइ-पुरसं सदावेइ, सद्दावेत्ता एवं वदासी-किण्णं देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहे इ वा -जाव-निग्गच्छति ? - तए णं से कंचुइ-पुरिसे जमालिगा खत्तियकुमारेणं एवं बुत्ते समाणे हट्टतुट्ठ समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अलि कट्ट जमालि खत्तियकुमारं जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेता एवं वधासीनो खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नवरे इंदमहे इ वा-जाव-निग्गच्छति । एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज समणे भगवं महावीरे आदिगरे-जाव-सव्वग्णू सवदरिसी माहणकुंडग्गामस्स नपरस्प बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं ओग्गह ओगिहित्ता संजमेणं तवसा अपाणं भावेमाणे विहरइ, तए णं एते बहवे उग्गा, भोगा-जाव-निग्गच्छति । जमालिकुमारस्स महावीरपज्जुवासणा .. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे कंचुइ-पुरिसस्स अंतियं एयमढें सोच्चा निसम्म हट्ठतुळे कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासीखिप्पामेव भी देवाणुप्पिया ! चाउरघंट आसरहं जुत्तामेव उवढवेह, उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पचप्पिणह ।। तए णं ते कोडंबियपुरिसा जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ता समाणा चाउग्घंट आसरहं जुत्तामेव उवट्ठति, उवट्ठवेता तमाणत्तिय पच्चप्पिणंति। तए णं से जमाली खत्तियकुमारे जेणेव मज्जगधरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता व्हाए कयबलिकम्मे-जाव-चंदणुक्खित्तगायसरीरे सवालंकारविभूपिए मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिमित्ता जेगेत्र बाहिरिया उबढाणसाला, जेमेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंट आसरहं दुरु हइ, दुरुहिता सकोरेंटमल्लदा नेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं, महया भडचडकरपहकरबंदपरिक्खित्ते खत्तिरकुंडग्गाम नगरं मझममेणं निग्गन्छइ, निगच्छिता जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे, जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागरिछत्ता तुरए निगिण्हेइ, निगिण्हेता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहिता पुप्फतंबोलाउहमादियं पाहणाओ य विसज्जेति, विसज्जेता एगलाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेता आयंते चोक्खे परमसुइन्भूए अंजलिमउलियहत्थे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सणं भावं महाबोरं तितो आपाहिण-पयाहिणं करेइ, करेता वंदइ नम इ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्ज वासणाए पज्जुवासइ । महावीरस्स धम्मकहा तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्प खत्तियकुमारस्स, तोसे य महतिमहालियाए इसिप रसाए [मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अगसयाए अणेगसबवंदाए अणेगस पवंदपरियालाए ओहबले अइबले महब्बले अपरिमियबलवीरिय-तेय-माहप्प-कंति-जुत्ते सारय-नवयणिय-प्रहरगंभीर-कोचणिग्धोस-दंदुभिस्सर उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे सना इग्गाए अगरलाए अमम्मणाए सुबत्तक्खरसण्णिवाइयाए पुण्ण रत्ताए सवभासाणगामिणीए सरस्सईए जोयणणोहारिणा सरणं अद्धभागहाए भासाए भासइ) धम्म परिकहेइ -जाव-परिसा पडिगया । पा जमालिकमारस्स पब्वज्जासंकप्पो तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्प अंतिए धाम सोच्चा निसम्म हटुतुचितमाणंदिए [गंदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए हरिसबसविसप्पमाण] हियए उट्ठाए उदुइ, उर्दुत्ता समगं भगवं महावीरं तिबुतो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्त। वंदइ नमसइ, वंदिता नमंसिता एवं वधासी--"सहामि णं भंते ! यिं पावणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयगं, रोएमि गं भते ! निग्गंथं पावणं, अब्भुमि गं भंते ! निगंथं पावयणं, एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अक्तिहमेयं भंते ! असंदिद्वमेयं भंते ! इच्छिपमेयं भंते ! पडिमिछपमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छिपमेयं भंते ! ]--से जहेयं तुन्भे वदह, जं नवरं--देवाणुपिया ! अम्मापियरी आपुच्छामि, तए णं अहं देवाणुपियाणं अंतियं मुंडे भविता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ।। भते ! यि पण, अब्भुमि गं भंते द्वमेयं भंते ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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