Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
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३६६
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
यवच्छे पालंबपलबमाणघोलंतभूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं नरिदे सोहासणाओ अब्भुट्टेइ, अब्भुठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता वेरुलियवरिटुरिटुअंजणनिउणोवियमिसिमिसितमणिरयणमंडियाओ पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता अवहट्ट पंच रायककुहाई तंजहा--१ खग्गं २ छत्तं ३ उप्फेसं ४ वाहणाओ ५ वालबीयणं, एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए अंजलिमउलियहत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तटु पयाई अणुगच्छइ, सत्तट्ठ पयाइ अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, वामं जाएं अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि साहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ, निवेसित्ता ईसिं पच्चुण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता कडग-तुडियथंभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता करयल-जाव-कटु एवं बयासी"मोत्थु णं अरहताणं भगवंताणं आइगराणं तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थोणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा अप्पडिहयवरनाण-दंसणधराणं वियदृछउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाण बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं, नमोऽत्यु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आदिगरस्स तित्थगरस्स-जाव-संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स, बंदामि गं भगवंतं तत्थ गयं इहगए, पासउ मे भगवं तत्थगए इहगयं" ति कट्ट वंदइ णमंसइ, वंदित्ता गमंसित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता तस्स पवित्तिवाउयस्स अठ्ठत्तरं सयसहस्सं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता सक्कारेइ, सम्माणेइ सक्कारिता सम्माणित्ता एवं वयासी"जया णं देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे इहमागच्छेज्जा, इह समोसरिज्जा, इहेव चंपाए गयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता अरहा जिणे केवली समणगणपरिवुडे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरेज्जा तया गं तुम मम एयमट्ठ निवेदिज्जासि"त्ति कटु विसज्जिए।
चंपाए भ० महावीरस्स समोसरणं ३१७ तए णं समणे भगवं महावीरे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रतासोगप्पगास-किसुय
सुय मुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलते आगासगएणं चक्केणं-जाव-सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा गयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, जेणेव वणसंडे, जेणेव असोगवरपायवे, जेणेव पुढविसिलापट्टए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलावट्टगंसि पुरत्थाभिमुहे पलियंकनिसन्ने अरहा जिणे केवली समणगणपरिवुडे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।'
चंपानयरीनिवासिजणाणं समवसरणगमणं पज्जवासणा य ३१८ तए णं चंपाए णयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु महया जणसद्दे इ वा [क्वदित्-बहुजणसद्दे इ वा जणवाए
इ वा जगुल्लावे इ वा] जणवूहे इ वा जणबोले इवा जणकलकले इ वा जणुम्मीइ वा जणुक्कलिया इ वा जणसष्णिवाए इ वा बहुजगो अण्णमण्णस्त एव माइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ-"एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सयंसंबुद्धे पुरिसुत्तमे-जाव-संपाविउकामे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे इहमागए, इह संपत्ते, इह समोसढे, इहेव चंपाए णयरीए बहि पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ। तं महप्फलं खलु भो देवाणु प्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णाम-गोयस्स वि सवणयाए, किमंग उण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवा सणपाए? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अदुस्स गहणयाए? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो सम्माणे मो कल्लाणं मंगल्लं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासामो, एयं णे पेच्चभवे इहभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ"त्ति कट्ट बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता एवं दुपडोधारेणं राइण्णा [क्वचित्-इक्खागा नाया कोरव्वा] खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई लेच्छईयुता अण्णे य बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभितयो, अपेगइया वंदणवित्तयं, अप्पेगइया पूषणवत्तियं, एवं सक्कारवत्तियं सम्माणवत्तियं दंसणवत्तियं कोऊहलवत्तियं, अप्पेगइया अट्ठविणिच्छयहेउं-अस्सुयाइं सुणस्सामो, सुयाई निस्संकियाई करिस्तामो; अप्पेगइया अट्ठाई हेऊई कारणाई वागरणाइं पुच्छिस्सामो, अप्पेगइया सव्वओ समंता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइस्सामो, पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जिणभत्तिरागणं,
अप्पेगइया जीयमेयंति कट्ट बहाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता क्विचित्-उच्छोलणपघोया] सिरसा कंठे मालकडा १. एतदनन्तरगतो विस्तृतो ग्रन्थसन्दर्भ औपपातिकसूत्रादवगन्तव्यः ।
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