Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
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कूणियस्स महावीर समवसरणगमण-धम्मसवणपसंगो
३६५
सोमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मणुस्सिदे जणवयपिया जणवयपाले जणवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे णरपवरे पुरिसवरे पुरिससोहे पुरिसबग्घे पुरिसासौविसे पुरिसपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्त वित्थिण्णविउलभवणसयणासणजाणवाहणाइण्णे बहुधण-बहुजायस्व-रयए आओगपओगसंपउत्ते विच्छड्डियपउरभत्तपाणे बहुदासो-दास-गो-महिस-गवेलग-प्पभूए पडिपुण्णजंतकोसकोट्ठागाराउधागारे बलवं दुब्बलपच्चामित्ते ओहयकंटयं निहयकंटयं मलियकंटयं उद्धियकंटयं अकंटयं ओहयसत्तुं निहयसत्तुं मलियसत्तुं उद्धियसत्तुं निज्जियसतुं पराइयसत्तं धवगयदुभिक्खं मारि-भयविप्पमुक्कं खेमं सिर्व सुभिक्खं पसंतडिब-इमर रज्जं पसासेमाणे विहरह।
कोणियस्स धारिणी देवी ।
३१२ तस्स णं कोणियस्स रण्णो धारिणी णामं देवी होत्था, सुकमालपाणिपाया अहोणपडिपुण्णपंचिदियसरीरा लक्खणवंजणगुणोववेया
माणु माणप्पमाणपडिपुण्गसुजायसव्बंगसंदरंगी ससिसोमांकारकंतपियदंसणा सुरूवा करयलपरिमियपसत्थतिवलीवलियमज्शा कुंडलुल्लिहियगंडलेहा कोमुइयरयणियरविमलपडिपुण्णसोमवयणा सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-विहिय-विलास-सललियसलावणिउणजुत्तोषवारकुसला प्रत्यन्तरपाठः-सुंदरथण-जघण-वयण-कर-चरण-नयण-लावण्ण-विलासकलिया] पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिस्वा, कोणिएणं रण्णा भंभसारपुत्तेण सद्धि अगुरत्ता अविरत्ता इट्टे सदफरिसरसरूवगधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विधड।
कोणियस्स निरंतरं भगवतपवित्तिनिवेययपुरिसे ३१३ तस्स णं कोणियस्त रणो एक्के पुरिसे विउलकयवित्तिए भगवओ पवित्तिवाउए भगवओ तद्देवसियं पवित्ति णिवेदेइ ।
तस्स णं पुरिसस्स बहवे अण्णे पुरिसा दिण्णभतिभत्तवेदणा भगवओ पवित्तिवाउया भगवओ तद्देवसियं पवित्ति णिवेदेति ।
कोणियस्स सुहविहरणं ३१४ तेणं कालेणं तेणं समएणं कोणिए राया भंभसारपुत्ते बाहिरियाए उवठाणसालाए अणेगगणणायग-दंडणायग-राईसर-तलवर-माडंबिय
कोडुबिध-मंति-महामंति-गणग दोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाह-दूयसंधिवालसद्धि संपरिवुडे विहरइ ।
३१५
भगवंतपवित्तिवावडपुरिसेण कोणियसमक्खं महावीरस्स चंपाए आगमणनिवेयणं । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे-जाव'-धम्मज्झएणं पुरओ पकड्ढिज्जमाणेणं चउद्दसहि समणसाहस्सोहि छत्तीसाए अज्जियासाहस्सीहि सद्धि संपरिबुडे पुव्वाणुपुब्धि चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे चंपाए नयरीए बहिया उवणगरग्गामं उवागए चंपं नारं पुण्णभदं चेइयं समोसरिउकामे। तए णं से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लढे समाणे हट्टतुट्ठचित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए
हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायछित्ते सुद्धप्पावसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्ख मइ, सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमित्ता चपाए णयरीए मझमज्झेणं जेणेव कोणियस्त रण्णो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव कोणिए राया भिभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं क्यासी"जस्स णं देवाणुप्पिया सणं कंखंति, जस्स णं देवाण प्पिया दंसणं पीहंति, जस्स देवाणप्पिया सणं पत्थंति, जस्स णं देवाणुप्पिया दसणं अभिलसंति जस्त णं देवाणप्पिया णामगोयस्स वि सवणयाए हद्रतद्र-जाव-हियया भवति, से णं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणवि चरमाणे गामाणग्गामं दूइज्जमाणे चंपाए णयरीए उवणगरग्गामं उवागए चंपं णरि पुण्णभद्दे चेइयं समोसारउकामे। तं एवं देवाणुप्पियाणं पियट्टयाए पियं णिवेदेमि, पियं ते भवउ ।
भगवंतं पइ कोणियस्स नमोक्काराइ ३१६ तए णं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते तस्स पवित्तिवाउयस्स अंतिए एयमट्ट सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ-जाव-हियए धाराहयनीव
सुरहिकुसुमं व चंचुमालइयऊसवियरोमकूर्व वियसियवरकमलणयण-क्यणे पयलियवरकडग-तुडिय-केऊर-मउड-कुंडल-हार-विरायंतरइ१. यावत्करणात् सूचितः पाठ औपपातिकसूत्रादवगन्तव्यः ।
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