Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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___18 प्रवृत्तिओ छे तेने दानधर्म वडे धननी मूर्छा घटे छे, त्यारे तेनी धर्मनिष्ठा पण वृद्धि पामे छे. तेवा पात्रजीवो सुपात्र जेवा दानथी परंपराओ मुक्तिने पामे छे.
लेखिकाओ एक अभिगम सुंदर रीते प्रकाशित कर्यो छे के विश्वमा कुदरत पण मानवने ओ शीखवे छे केवळ लेवानुं न राखो पण आपवानु राखो. पृथ्वी, पाणी, वायु, आकाश, वनस्पति जेवा अकेन्द्रिय जेवा प्राणीमात्रने जीवनशक्ति आपी रह्या छे. तो पछी मानवे शा माटे कृपण थवं. वळी मानव केवळ धनथी ज दान करी शके तेवू नथी तेनी पासे बीजी पण शक्तिओ छे, जेनुं ते प्रदान करी शके. ते द्वारा आ जगतनुं ऋण चूकवी शके छे. मानव माटे ऋणमुक्तिनो ए महान अवसर अने अभिगम छे.
संस्कृत महाकाव्योमांथी पण लेखिकाओ दाननो महिमा उद्धृत कर्यो छे. जे लगभग सामान्य रीते बहु प्रचलित नथी. तेने प्रकाशमां लाव्या छे. ते उपरांत निती कथाओ, भागवत पुराण ग्रंथोमांथी पण आपणने दाननो परिचय कराव्यो छे.
आवा अनेक ग्रंथोनो आधार लईने दाननी गरिमा, शुद्धि, विधि जेवा प्रकारो दर्शावी दानधर्मनुं गौरव प्रस्तुत कयुं छे.
__छतां आ सर्वे दानमां अभयदान शा माटे श्रेष्ठ छे ते दर्शावता जणावे छे के अणुयुद्ध जेवा आ समयमा हरेक राष्ट्रमां पशुता दूर करवा अभयदाननो बोध अत्यंत जरूरी छे. अणु बोंब जेवा स्फोटक पदार्थो केवी तराजी सर्जी छे ते आपणे सौ जाणीओ छीओ. पांच दस पेढी सुधी अमानवीय रीते करेला आ प्रयोगथी जीवो दुःख सहन करशे. तेवा काळे अभयदाननो प्रसार अत्यंत जरुरी छे.
दानना विविध प्रकारो दर्शाववा साथे लेखिकाओ दातानी योग्यता विषे पण केटलाक विकल्पो रजू कर्या छे. जीवमात्र भावना स्वरूप छे. तेथी भावशद्धिनी असर अन्योन्य थाय छे. दान आपनारना भावनी केवी असरो थाय छे ते विगत सचोट दृष्टांतथी जणावी छे : ते वांचीने समजाय छेके दान आपवा साथे मानवना मननी भावना उदात्त अने शुद्ध होवी जोइओ. जे अन्योन्य उपकारी बने छे.
___ जेम उत्तम स्थानोमां आपेलुं दान उत्तम प्रकारे फळदायी थाय छे, तेम उत्तम भावना वडे आपेलुं दान ग्रहण करनारने पण लाभदायी थाय छे. दाता गुणवान होय तो स्व-पर श्रेय थाय छे तेना उदाहरण तेमणे टांक्या छे. जो दान आपनारनो भाव लेनार प्रत्ये तिरस्कार युक्त हशे तो लेनारने पण ते दानथी