Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 19
________________ 16 आ दान कार्यनो क्यांय देखाव नहि. कहुं छे "जमणो हाथ आपे, डाबो हाथ न जाणे" तेवू तेमणे सार्थक कर्यु छे.. दान धर्मना पुस्तकमां जेम विविधता छे विशदता छे तेम तेमना दानधर्म करवामां विविधता अने विशदता रही छे. वाचकवर्गने थशे हं तेमनी प्रशंसा करूं छु, पण तेवू नथी आ साची हकीकत जणावं छं. कारण के तेमनी आ विगत जाण्या पछी हुं लखवा प्रेराई छु. आ कार्यमां तेमना पति तथा परिवारनो पूरो साथ छे तेवो पुण्ययोग छे. सविशेष तेमना आवा उदात्त कार्यमां तेमना पतिश्री सज्जनसिंहनी प्रेरणा . प्रशंसनीय छे. बे हाथे ताळी पड़े तेनो रणको जुदो होय. तेवो तेमना जीवनमां सुमेळ छे ते उदाहरणरूप छे. तेमना पति सहित परिवार पण पुण्यवंतो छ तेथी तेओना सहयोगथी तत्त्वनो अभ्यास करवामां समयनो खूब सद्उपयोग करी रह्या छे. दान जेवू सत्कार्य करवामां अने लखवामां उदत्तभावे करी शक्या छे. वळी पोते स्वयं तो सत्कार्य करे पण तेओ तेमां मने पण सत्कार्य कराववामां साथे राखे छे. त्यारे तेमनो आनंद वृद्धि पामे छे. आ तेमनी प्रशंसा नथी पण ते माटे तेमने हार्दिक अभिनंदन आ छु.. दान धर्मना पुस्तकमांथी केटलाक नोंधपात्र लेखनने समजवा आपणे प्रयत्न करीओ. "दान विषे प्रथम भागमां जणाव्यं छे के भगवान महावीरे दान विषेनो महिमा बताव्यो छे के "मूधादायी अने मूधाजीवी", अर्थात् जेमां दातानु तथा ग्रहण करनार बनेनुं कल्याण होय. जो के तेवा उत्तम दानमां मुख्यत्वे तिर्थंकरवरसीदान छे. वळी श्रेष्ठ प्रसंगे राजाओ ज्यारे तेमना दासदासीओने भेट आपता त्यारे तेमनुं दारिद्र जीवनपर्यंत दूर थाय ते रीते आपता हता. वस्तुपाळ, तेजपाळ, भामाशाह विगेरे उत्तम दानवीरो आ शासनमां थया छे. धन कमावं मुश्केल नथी वळी ते तो पुण्यथी वगर आमंत्रणे आवे छे, पण तेनो दानादिथी सद्उपयोग कोई पुण्यशाळी निःस्पृहभावे करी शके छे.'' लेखिकाओ दाननी विविधता सुंदर रीते दर्शावी छ : आहारदान, ज्ञानदान, अभयदान, अनुकंपादान, जीवनदान, औषधदान.

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