________________
१६
* चौबीस तीथकर पुराण
।
।
कुछ मनचले लोग तुम्हें
है इसी सिलसिले में राजा वज्रदन्तने अपने, श्रीमतीके और ललितांग देवके किननेही पूर्वभवों का वृत्तान्त सुनाया था । जिन्हें सुनकर श्रीमतीको अपार हर्ष हुआ । 'मैं अब बहनोई बज्रवाहु वहिन वसुन्धरा और भानेज वज्रजनको लेनेके लिये जा रहा हूँ वे मुझे कुछ दूरी पर रास्तामें ही मिल जायेंगे' यह कहकर चक्रवर्ती श्रीमतीके पाससे गये ही थे कि इतनेमें पण्डिता धाय, जोकि श्रीमतीका चित्रपट लेकर ललितांगदेवको खोजने के लिये गई हुई थी, हंसती हुई वापिस आगई और श्रीमतीके सामने एक चित्र पट रखकर बैठ गई । यद्यपि पिताके कहने से उसे ललितांगदेवका पूरा पता लग गया था तथापि उसने कौतुक पूर्वक fosनासे उसका सब हाल पूछा उत्तर में पण्डिता बोली- सखि ! में यहांसे तुम्हारा चित्र पत्र लेकर महापूत जिनालय को गई थी वहां जिनेन्द्र देवको प्रणाम कर वहांकी चित्रशालामें बैठ गई मैंने वहाँपर ज्योंही तुम्हारा चित्र पट फैलाया त्योंही अनेक युवक क्या है ? क्या है ? कहकर उसे देखने लगे । पर उसका रहस्थ किसीकी समझ में नहीं आया पाने की इच्छा से झूठ मूठ ही उसका हाल बतलाते थे । में चुप कर देती थी। कुछ समय बाद वहां एक युत्रा आया जो देखनेमें साक्षाकामेश्वर सा लगता था । उसने एक-एक करके श्रीमतीके चित्रपटका समस्त हाल बतला दिया । देव समूहके देखनेसे यहां पर जैसी तुम्हारी अवस्था हो गई थी वहां चित्र पर देखनेसे ठीक वैसी ही अवस्था उसकी हो गई । वह देखते देखते मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ा। जब बन्धु वर्गने उसे सचेत किया तब वह मुझसे पूछने लगा-भद्रे ! कहो, यह चित्रपट किसका है ? किस देवीके मनोहर हाथोंसे इसका निर्माण हुआ है ? यह मुझे बहुत ही प्यारा लगता है । तब 'मैंने उससे कहा कि यह तुम्हारी मामी लक्ष्मीसतीकी पुत्री श्रीमतीके कोमल हाथोंसे रचा गया है।' मैंने उसकी चेष्टाओंसे निश्चय कर लिया था कि यही ललितांगका जीव है । उसके बन्धु बर्गसे मुझे मालूम हुआ है कि वह पुष्कलावती देशके राजा बज्रबाहुका पुत्र है । लोग उसे बज्रजङ्घ नामसे पुकारते हैं । बज्रघने तुम्हारा चित्र पर अपने पास रख लिया है और यह दूसरा चित्र पर मेरे द्वारा तुम्हारे पास भेजा है । कैसा चित्र पट है सखि ? इतना कहकर
पर मैं उन्हें सहज ही
1