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चौवीस तीथफर पुराण *
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देवोंका आगमन देखकर आज मुझे ललितांग देवका स्मरण हो आया है बस, यही मेरे दुःखका कारण है । अब ललिताँगके विना मुझे एक क्षण भी वर्पके समान मालूम होता है और यह दुष्ट काम अपने पैने वाणोंसे मुझको घायल कर रहा है । यह कहकर श्रीमतीने पण्डितासे कहा कि प्यारी सखि ! तुम्हारे होते हुए भी क्या मुझे दुख होगा ? चांदनीके छिटकनेपर भी क्या कुमुदिनी दुःखी होती है ? मेरा विश्वास है कि आप हमारे ललितांगकी खोजकर उनके साथ मुझे अवश्य हो मिला देवेगी । देखो, मैंने इस पटियेपर अपने पूर्व भवके चित्र अङ्कित किए हैं इन्हें दिखलार आप सरलतासे ललितांगकी खोज कर सकती हैं। यह सुनकर पण्डिता धायने श्रीमतीको खूब आश्वासन दिया
और उसके पाससे चित्र पट लेकर ललितांगकी खोज करने के लिये चल दिया वह सबसे पहले महापत चैत्यालयको गई और वहां जिनेन्द्र देवको प्रणाम कर चित्रशालामें चित्रपट फैलाकर बैठ गई । प्रायः त्यालयमें सभी लोग आते थे इसलिये पण्डिताके अनोखे चित्रपटपर सभीकी नजर पड़ती थी पर कोई उसका रहस्य नहीं समझ पाते थे। इसके बाद जो कुछ हुआ वह आगे लिखा जावेगा।
श्रीमतीके पिता वज्रदन्त चक्रवर्ती जो कि श्रीमतीका उक्त हाल होनेके वाद दिग्विजयके लिए चले गये थे अबतक लौटकर वापिस आगये । यद्यपि वे अपने समस्त शत्रुओंको जीत कर आये थे इसलिये प्रसन्न चित्त थे तथापि श्रीमतीकी चिन्ता उन्हें रहकर ग्लान मुख बना देती थी। मौका पाकर वजद न्तने श्रीमतीको अपने पास बुलाकर कुशल प्रश्न पूछा और फिर कहने लगे कि प्यारी बेटी ! मुझे यशोधर महाराजके प्रसादले अवधि ज्ञान प्राप्त हुआ है इसलिये मैं अपने तुम्हारे और तुम्हारे प्रियभर्ती ललितांगदेवके ही पूर्व भव जानने लगा है । मैं यह भी जान गया हूँ कि तुम्हें देवोंके देवनेसे अपने पूर्वभवका स्मरण हो आया है जिससे तुम अपने हृदयवल्लभ ललितांगदेवका बार बार स्मरण कर दुखी हो रही हो। पर अब निश्चित होओ और पहलेकी तरह आनन्दसे रहो । तुम्हारा ललितांग पुष्कलावती देशके उत्पल खेट नगरमें रहनेवाले राजा वजबाहु और रानी वसुन्धराके वध नामका पुत्र हुआ है। जोकि हमारा भानेज है। उसके साथ तुम्हारा शीघ्रही विवाह सम्बन्ध होनेवाला
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