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श्रमण परम्परा की सामायिक साधना
करेमि भंते सामाइयं
सव्वं सावज्जं जोग पच्चक्खामि
जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं
मणेणं, वायाए, कारणं
न करेमि, न कारवेमि, करतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते
पडिक्कमामि, निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि !
भंते ! मैं सामायिक करता हूँ,
सब प्रकार के सावद्य पाप कर्मों का त्याग करता हूँ, जीवन पर्यन्त
तीन करण और तीन योग से
अर्थात् मन से, वचन से, काय से
सावद्य कर्म न करूंगा, न कराऊँगा,
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भावार्थ :
और न पाप कर्म करने वाले दूसरों का अनुमोदन ही करूंगा, भंते ! पूर्वकृत पापों का
मैं प्रतिक्रमण (निवृत्ति) करता हूँ, उनकी निन्दा एवं गर्हा करता हूँ । पापाचार से दूषित अपने पूर्वजीवन का मैं पूर्णरूप से विसर्जन करता हूँ ।
श्रमण परम्परा की सामायिक साधना !
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