Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

View full book text
Previous | Next

Page 143
________________ "अलब्ध्वा यदि वा लब्ध्वा नानुशोचित पण्डितः । आनन्तर्ये चारभते न प्राणानां घनायते ॥" २० -जिसके महान् और अद्भुत पुरुषार्थ एवं चरित्र की यशस्वी चर्चा नहीं होती है। वह मनुष्य अपने द्वारा राष्ट्र में केवल जनसंख्या में वृद्धि करनेवाला है। मेरी दृष्टि में वह व्यक्ति न स्त्री है, और न पुरुष "यस्य वृत्तं न जल्पन्ति मानवा महद्भुतम् । राशिवर्धन मात्रं स नैव स्त्री न पुनः पुमान् ॥"२२ । दान, तपस्या, सत्य - भाषण, विद्या तथा ऐश्वर्य आदि में जिसके सुयश का सर्वत्र बखान नहीं होता है, वह मनुष्य अपने माता का पुत्र नहीं, मल-मूत्र मात्र है "दाने तपसि सत्ये च यस्य नोच्चारितं यशः । विद्यायामर्थलाभे वा मातुरुच्चार एव सः ॥२३" संसार की कोई भी नारी ऐसे पुत्र को जन्म न दे, जो निर्मर्ष अर्थात् स्वाभिमान शून्य, उल्लासहीन, बल और पराक्रम से रहित तथा विरोधी पक्ष को आनन्द देनेवाला हो "निरमर्ष निरुत्साहं निर्वीर्यमरिनन्दनम् । मा स्म सीमन्तिनी कश्चिज्जनयेत् पुत्रमीदृशम् ॥" ३० निश्चेष्ट प्रमादी मनुष्य कभी कोई महत्ता प्राप्त नहीं कर सकता __ "निरीहो नाश्नुते महत् ।" भृत्यहीन, दूसरों के अन्न पर जीनेवाले दीन, कृपण और दुर्बल मनुष्यों की वृत्ति का अनुसरण न कर । "भृत्य विहीयमानानां परपिण्डोपजीविनाम् । कृपणानामसत्त्वानां मा वृत्तिमनुवर्तिथाः ॥"४१ जो क्षत्रिय जीवन के भय एवं प्रलोभन से अपने कर्तव्य से पराङ मुख होकर अपने यथाशक्ति पराक्रम के द्वारा अपना यथार्थ तेज प्रकट नहीं करता है, वह क्षत्रिय नहीं, अपितु चोर है । धन का चोर ही चोर नहीं, सबसे बड़ा चोर तो कर्तव्य से भ्रष्ट चोर है । १३० चिन्तन के झरोखे से। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166