________________ आप जीवन के, चाहे जिस किसी क्षेत्र में रम रहे हों, भले ही वह क्षेत्र, श्रमण का हो, श्रमणी का हो, श्रावक या श्राविका का हो। किन्तु सबके बीच संयम का होना एक अपरिहार्य तत्त्व है। संयम के बिना जीवन संतुलित नहीं रहता और संतुलन के बिना सुनियोजित रूप से गति-प्रगति कदापि नहीं हो सकती है। और याद रखिए गति में ही जीवन है। गति के अभाव में, जीवन, जीवन रह ही नही जाएगा, वह तो जीवन विहीन, सिर्फ चलती-फिरती लाश रह जाएगी। अत: संयम ही जीवन है / उपाध्याय अमर मुनि