Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 164
________________ यह तो कुछ बाह्य घटनाएँ हैं । अन्तर् - जीवन का वीरत्व भी महावीर का अद्भुत है । महावीर राज्य वैभव, सुन्दर पत्नी एवं प्रियजनों का परित्याग करते हैं । कब करते हैं ? तीस वर्ष की उत्तेजक तरुणाई के काल में । इस अवस्था में अधिकतर मानव अन्धे होकर अन्ध-गर्त में गिरते हैं, निकलते नहीं हैं । किन्तु, महावीर निकलते हैं और वैराग्य के अग्नि पथ पर पुष्प - पथ की भाँति चल पड़ते हैं । उनकी अन्तश्चेतना में न इस लोक के किसी सुख का विकल्प है और न परलोक के किसी भौतिक सुख का । लोक और परलोक के दोनों विकल्पों से परे हट कर चले हैं महावीर । उनकी साधना की सिद्धि का एक ही चमत्कृत कर देने वाला लक्ष्य है, अपने शुद्ध स्वरूप की उपलब्धि - " सिद्धि स्वात्मोपलब्धि " बड़े - बड़े सहस्र योद्धा क्या, कोटि भट्ट कहे जाने वाले वीर भी अन्दर में इतने दुर्बल होते हैं कि भोगासक्ति का एक अणुमात्र कोना भी ध्वस्त नहीं कर पाते हैं। मन के इतने बड़े भिखारी होते हैं, कि भिक्षा पात्र में से एक सड़ा हुआ कण भी बाहर नहीं फेंक पाते हैं । किन्तु, महावीर जैसे विरल ही वीर चैतन्य होते हैं, जो कुछ ही क्षणों में सर्वस्व का परित्याग कर देते हैं और पीछे मुड़ कर कभी देखते भी नहीं, कि क्या हो रहा है ? - लेख को उपसंहार तो नहीं दे पा रहा हूँ, मात्र विश्राम दे रहा हूँ - समयाभाव के कारण । मैं भक्तिरस से आप्लावित अपने अन्तर्मन से इस विराट् महावीर को अनन्तशः प्रणाम करता हुआ भावना करता है " महावीर स्वामि नयन पथगामी भवतु मे " ✩ ✩ संदर्भ १. सम्मतिर्महतिवीरो, नाथान्वयोवर्द्धमानो Jain Education International महावीरोऽन्यकाश्यपः । यत्तीर्थनीह साम्प्रतम् ॥ भगवान् महावीर, महावीर क्यों हैं ? : ✩ -धनञ्जय नाममाला For Private & Personal Use Only १५१ www.jainelibrary.org

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