Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 162
________________ कौसाम्बी के बाहर उद्यान में पधार जाते हैं। भला दया के अप्रतिम देवता, ऐसी भयंकर स्थिति में चपचाप किसी कोने में कैसे बैठे रह सकते थे ? भगवान् महावीर पधारे, और चमत्कार हो गया। चण्डप्रद्योत को बोध मिला। प्राचीर के द्वार खुल गए। महारानी मृगावती और सर्व साधरण जनता समुद्र की भांति महाप्रभु के दर्शनार्थ उमड़ पड़ी। चण्डप्रद्योत, लघु वयस्क राजकुमार उदयन एवं कौसम्बी की सुरक्षा का भार एवं दायित्व सहर्ष अपने ऊपर ले लेता है तथा महारानी मृगावती जिनेन्द्र महावीर के श्रीचरणों में दीक्षित हो कर साध्वौ संघ की प्रमुख आर्य चन्दना की सेवा में धर्म - साधना करने में संलग्न हो जाती है। यह घटना साधारण नहीं है। इसे जितना भी असाधारण कहा जाए, उतना ही कम है। जब की आज का उपलब्ध आगम दशवैकालिक उद्घोष कर रहा है-साधु को जहाँ कलह और युद्ध हो रहा हो, उस स्थान का दूर से परित्याग कर देना चाहिए "कलहं युद्ध दूरओ परिवज्जए ॥"-५, १, १२. महावीर, यह सब जानते थे, किन्तु उनकी विहारचर्या मात्र शास्त्र - शब्दानुबद्ध अनुगत नहीं थी, जो शास्त्रों के पीछे - पीछे चले। उनकी विहार - चर्या देशकालोचित निर्धारित थी। देशकाल के अनुरूप जो उचित समझा, बिना किसी ननु - नच के वही किया महावीर ने । तभी तो अहिंसा के सम्बन्ध में 'अहिंसा परमोधर्म:' मात्र एक शाब्दिक नारा नहीं था महावीर के पास, अपितु जीवन के कण - कण में अमृत - रस की तरह आप्लावित अहिंसा, एक वह दिव्य भाव धारा थी, जो हिंसा की हर चुनौती का साकार उत्तर देने के लिए प्रस्तूत थी। आइए अब हम मगध देश की राजधानी राजगह चलें। अर्जुन मालाकार कोपाविष्ट है, यक्षाविष्ट है। उसके पास मनुष्य का एक आकार है, अन्य सब - कुछ राक्षस के रूप में परिवर्तित हो गया है । मृत्यु का यह यमदूत निर्दोष आबाल - वृद्ध, स्त्री और पुरुष, गृहस्थ और संन्यासी, सभी को अपने मुद्गर का शिकार बनाता है और इधर - उधर लाशों का ढेर लगाता हुआ भीषण अट्टहास करता है । मगध-सम्राट् की सेना उसके सामने कुछ नहीं भगवान महावीर, महावीर क्यों हैं ? : १४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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