Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 161
________________ जनता उक्त दिव्य चमत्कार को देखते और सुनते ही, महर्षि के दर्शनों को उमड़ पड़ी, किन्तु महावीर थे बिना किसी इधर - उधर के यश बटोरने की भावना से सर्वथा मुक्त । अतः चण्डकौशिक के प्रतिबुद्धित होते ही वे शीघ्र ही आगे बढ़ गए । जनता की भाषा में सहसा अन्तर्धान हो गए। एक और कथा प्रसंग है। कौशम्बी के वत्सराज शतानिक सहसा परलोकवासी हो गए हैं। उनका पुत्र उदयन अभी तक लघुवयस्क बालक ही है। पूर्व की सम्राज्ञी राजरानी एवं वर्तमान की राजमाता शोक से अवसन्न है । इसी बीच अवन्ती का कामान्ध चण्डप्रद्योत रूपवती नारियों में सुप्रसिद्ध व सर्वमुख प्रशसित रमणी मृगावती को अपनी पत्नी बनाने का विचार करता है। प्रेम और प्रलोभन के माया-पास जब काम न आ सके, तो अपहरण के लिए एक महती विराट सेना लेकर आक्रमण कर देता है और कौसाम्बी के महाप्राकार को चारों ओर से घेर लेता है। वत्स देश की सेना पहले के ही अनेक युद्धों में क्षत - विक्षत हो चुकी थी। उसे संभलने एवं संवरने का अवसर नहीं मिला था। अतः महारानी के लिए अपनी नगण्य सेना को लेकर दुर्ग के रूप में सुदृढ़ प्राकार के अन्दर बन्द हो जाने के सिवा अन्य कोई मार्ग शेष नहीं रहा। यह घेरा महीनों पड़ा रहा । धीरे - धीरे शस्त्रास्त्रों एवं सेना की क्षीणता ही नहीं हुई, अपितु नगर की जनता में भी खाद्यान्न के अभाव में हा-हाकार मच गया। किन्तु, महारानी मृगावती अपने सतीत्व की रक्षा के लिए प्राणों के अन्तिम सांस तक झूझने के लिए तैयार थी, और वह अन्तिम विनाश के दृश्य को आँखों के समक्ष देखती हुई भी महाकाल के समक्ष वीरता के साथ झूझती रही। उक्त भयंकर युद्ध एवं उसके हेतु की चर्चा दूर - दूर तक फैल चुकी थी। अनेक धर्माचार्य धर्म की ध्वजा फैराते हुए इधर - उधर भ्रमण कर रहे थे, किन्तु इतिहास का वह खेद का काला पृष्ठ है कि कोई भी धर्म गुरु इस समय कौसाम्बी तो क्या, कौसाम्बी के आस - पास भी नहीं आए। किन्तु महावीर, महावीर हैं, विलक्षण महावीर हैं। वे अपने आबाल - वृद्ध बहुसंख्यक श्रमण एवं श्रमणियों के संघ के साथ में १४८ चिन्तन के झरोखे से। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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