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तीर्थंकरों के कल्याणक : एक समीक्षा
संसार के प्रत्येक प्राणी का जीवन घटनाओं का एक विराट चक्र है। जीवन हो, और वह घटना शून्य हो, यह सर्वथा असम्भव है। यह बात दूसरी है, कि कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं, जिनमें व्यक्ति स्वयं रोता है और दूसरे हँसते हैं। इसके विपरीत कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं, जिनमें दूसरे रोते हैं और स्वयं हँसता है। और कुछ घटनाओं में अनेक व्यक्ति मिल - जुल कर हँसते हैं, रोते हैं। उक्त घटनाओं का प्रभाव क्षेत्र देश-काल की कुछ सीमाओं तक ही सीमित होता है।
___ किन्तु, कुछ महापुरुषों और दिव्य आत्माओं की जीवन घटनाएं साधारण जाग तक जीवों से भिन्न ही होती हैं। उन घटनाओं का प्रभाव - क्षेत्र भी देशासीत एवं कालातील होता है। और, वह प्रभाव वस्तुतः प्रभाव होता है, जो जन - जीवन के लिए सर्वतो भावेन कल्याण रूप होता है। इसी अर्थ में हम जैन - परम्परा के तीर्थकरों के जीवन की घटनाओं को साधारण घटना के रूप में न लेकर, कल्याणक के रूप में सुगहित करते हैं।
तीर्थंकरों के जीवन में वैसे तो अनेक घटनाएँ होती हैं, किन्तु हम उनमें से पाँच को मुख्य रूप से लेते हैं। जिन्हें हम छोटे - बड़े अनेक मतभेदों के होते हुए भी सभी परम्पराएँ कल्याणक रूप में पूज्य भाव से स्वीकार करती हैं। वे पाँच कल्याणक हैं--च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण । ___ मैं स्वयं जैन - धर्म का एक साधक भिक्ष है। अतः मैं भी सभी कल्याणकों के प्रति समादर का भाव रखता है। फिर भी मेरे अन्तर्मन की चिन्तन - धारा में कुछ ऐसी तर्क की विचार-तंरंगे उठ रही हैं, जिन्हें मैं यहाँ अभिव्यक्ति देना चाहता हूँ।
तीर्थंक में के कल्याणक । एक समीक्षा।
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