Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 155
________________ प्राचीन आगम - साहित्य में अनेकत्र 'समणे भगवं महावीरे' इत्यादि पवित्र शब्दों में 'महावीर' नाम का उल्लेख है । आगमोत्तर कालीन प्राकृत और संस्कृत - साहित्य में भी महावीर नाम ही अधिकतर प्रयुक्त हुआ है । सर्व साधारण जनता में भी महावीर नाम ही सुविख्यात है । उक्त नाम इतना लोकप्रिय हो चुका है कि बौद्ध धर्म की महायान परम्परा के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ सद्धमं पुण्डरीक में भी तथागत भगवान् बुद्ध को भी महावीर नाम से अभिहित किया गया है । अतः स्पष्ट है कि अन्य नामों की अपेक्षा महावीर नाम सर्वाधिक प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था । प्रश्न है, महावीर शब्द प्रारम्भ में किस दृष्टि से और किन लोगों के द्वारा प्रचलित हुआ ? एतदर्थं हम पुनः चतुर्दश पूर्वधर आचार्य भद्रबाहु की शरण में पहुँचते हैं । उनके द्वारा संरचित कल्पसूत्र, हमें इस सम्बन्ध में स्पष्ट सूचना देता है - "भय - भैरव के उत्पन्न होने पर भी अचल रहने वाले, परीषह और उपसर्गों को शान्ति एवं क्षमा से सहन करने में सक्षम, प्रिय और अप्रिय प्रसंगों में समभावी, संयम युक्त और अतुल पराक्रमी होने के कारण देवताओं ने 'श्रमण भगवान् महावीर' नाम रखा । उपर्युक्त उल्लेख पर से स्पष्ट हो जाता है कि महावीर नाम कोई साधारण नाम नहीं है, लोमहर्षक भयंकर परीषहों एवं उपसर्गों को महावीर ने अपने साधना - काल में अत्यन्त समभाव से सहन किया, जरा भी विचलित नहीं हुए- 'मेरुव्ववायेण अकंपमाणो ।' जैसे मेरु पर्वत उम्र भंझावातों से भी सर्वथा अकंपित रहता है, उसी प्रकार महावीर भी उपसर्गों के झंझावातों में अविचल एवं अकंप रहे हैं । अतएव दिव्य दृष्टि देवों ने तथा साथ ही तत्कालीन प्रसिद्ध वीरों ने उन्हें महावीर नाम से सम्बोधित किया । यह नामकरण आजकल की तरह यों ही इधर-उधर से नहीं प्राप्त कर लिया गया है, अपितु अपने अप्रतिम धैर्य, सत्साहस, एवं अविचल साधनानिष्ठता के बल पर भक्त भाव से भक्त देवों द्वारा प्राप्त हुआ है । यही हेतु है कि उक्त नाम की सहस्राधिक वर्षों से परम्परागत अक्षत ख्याति चली आ रही है । यही भाव शब्दशः अंग - साहित्य में प्रथम अंग स्थानीय आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंधक में भी समोपलब्ध है । १४२ चिन्तन के झरोखे से । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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