________________
बोली नहीं । अस्तु हम यहाँ व्याकरणोत्तर कोष का ही, जो अधिक महत्त्व है, उसी के उदाहरण समीक्षा हेतु दे रहे हैं। ____संस्कृत कोषों की माला में सर्वतः सुप्रसिद्ध अमर-कोष है। देखिए यानों के प्रसंग में शिविका के लिए वह क्या कहता है"शिविका याप्ययानं स्यात्" अमर कोष के सुप्रसिद्ध टीकाकार आचार्य कृष्णमित्र अपनी संस्कृत टीका में शिविका शब्द की कितनी स्पष्ट व्याख्या करते हैं-"शि वैव संज्ञायां कन् (५, ३, ७५) याप्यरधर्मेवा यानम् पालकी लोके ।"-अमर कोष, द्वितीय काण्ड, क्षत्रिय वर्ग, श्लोक ५३ ।
। प्रस्तुत श्लोक के उत्तरार्द्ध में दोला शब्द का प्रयोग है"दोला प्रेङ खादिका स्त्रियाम् ।" आचार्य कृष्ण मित्र ने टीका में स्पष्ट किया है-"दोलयति, दुल उत्क्षेपे (चु. उ. से. ) प्रेष्य (ङ खय) ते । इषि गती । डोली लोके ।"
उक्त कथन पर से स्पष्ट हो जाता है, शिविका और दोल-- दोनों ही प्रयोग डोली रूप वाहन के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं।
अमर-कोष के हिन्दी टीकाकार पं० श्री मन्नालाल 'अभिमन्यु ने भी दोला का एक अर्थ स्पष्टतः डोली किया है।
जैन - परम्परा के महान् श्रुतधर आचार्य श्री हेमचन्द्र मुनि वरेण्य ने अभिधान चिन्तामणि के नाम से एक महान संस्कृत कोष की रचना की है। प्रसन्नता है, यह कोष प्राचीन काल से ही प्रायः जैन-जैनेतर प्रमुख संस्कृत टीकाकारों को सादर मान्य रहा है। अतः हम यहाँ प्रस्तुत प्रसंग में 'अभिधान चिन्तामणि' को उपस्थित किए देते हैं
"शिविका याप्ययाने अथ दोला प्रेङ खादिका भवेत्"
आचार्यश्री ने अभिधान चिन्तामणी पर स्वयं द्वारा ही रचित स्वोपज्ञ वत्ति में उक्त शब्दों का जो स्पष्टीकरण किया है, उस पर से पालखी और डोली का अर्थ स्पष्ट हो जाता है___ शिव शिविका याप्यस्य अशक्तस्य यानं युग्याख्यं याप्ययानं 'कृपानम्' इति गौङ तत्र ।"
दोल्यते दोला काष्टमयी, रज्जुप्रालम्बश्च, प्रेङ खयते प्रेङ खा हिण्डोलकाख्यो आदि ग्रहणात शयानकादि याप्यमानानुवसे: । -श्लोक ४२२
७४
चिन्तन के झरोखे से :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org