________________
- जो अपने विरोधियों के दोषों का भी जनता में कदापि खुला नग्न प्रचार नहीं करते हैं, अपितु दूसरों के गुणों का ही यथाप्रसंग यत्र-तत्र कीर्तन करते रहते हैं, वे स्वर्गगामी होते हैं ।
" ये नाम भागान्कुर्वन्ति क्षुत्तृष्णा श्रमपीडिता: ।
हन्तकारस्याकतारस्ते नराः स्वर्गगामिनः ॥ ६६, ३८
- जो व्यक्ति स्वयं भूख-प्यास और श्रम से पीड़िते होते हुए भी प्राप्त सामग्री का साथियों में समविभाग करते हैं, और दूसरों को सहयोग देने हेतु सदा तत्दर रहते हैं, वे स्वर्गगामी होते हैं । "वापीकूपतडागानां प्रपानां चैव वेश्मनाम् ।
आरामाणां च कर्तारस्ते नराः स्वर्गगामिनः ।। " ६६, ३६
- जो जन हित की दृष्टि से वापी, कून, तडाग, प्रपा, अतिथिगृह तथा उद्यानों का निर्माण करते हैं, वे स्वर्गगामी होते हैं । "यस्मिन्कस्मिन्कुले जाता बहुपुत्राः शतायुषः ।
सानुक्रोशाः सदाचारस्ते नराः स्वर्गगामिनः ॥ ६६, ४१
- जिस किसी भी कुल में पैदा हुए हों, किन्तु जो दयालु हैं, सदाचारी हैं, वे बहुपुत्रन शतायु मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं ।
"निन्दितानि न कुर्वन्ति कुर्वन्ति विहितानि च ।
आत्मशक्ति विजानन्ति ते नराः स्वर्गगामिनः ॥ ६६, ५०
-जो अशुद्ध निन्दित कर्म नहीं करते, सदैव शुद्ध विहित कर्म करते हैं और अपनी कर्तव्य शक्ति को अच्छी तरह जानते-समझते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं ।
-
श्री पद्म पुराण के अनुसार ही प्रायः अन्य पुराणों में भी स्वर्ग-गमन के हेतुओं का वर्णन है । पहले विचार था कि अन्य पुराणों के उद्धरण भी दिए जाएँ । किन्तु, वर्णन में प्राय: एकरूपता ही अधिक है । अतः व्यर्थ के शब्द - विस्तार से क्या लाभ ? जिन लोगों को अपने ज्योतिर्मय भविष्य का निर्माण करना है, उनके लिए इतना ही पर्याप्त है । जीवनोपयोगी एक अक्षर और पूरा शास्त्र, प्राय: समकक्ष ही होते हैं । जो आत्माएँ जीवन की पवित्रता के उच्च शिखर पर होती हैं, उनके लिए उन स्वर्ग और नरकों के वर्णन का कोई अर्थ नहीं है । आत्मभाव की परम लीनता
२
चिन्तन के झरोखे से :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org