________________
ये हैं नरक लोक के यात्री
भारतीय संस्कृति की अनेक विध धर्म-परम्पराओं एवं लोककथाओं से संबंधित नरक एवं स्वर्ग का वर्णन प्रायः सर्वत्र उल्लिखित एवं चर्चित है । आस्तिक परम्पराओं का तो यह प्रमुख विषय रहा है। वर्तमान जीवन के बाद आने वाले उत्तर जीवन की चर्चा आते ही, नरक और स्वर्ग की चर्चा सहसा आ खड़ी होती है ।
उक्त चर्चाओं का मूल हेतु क्या है, उसके अनेक उत्तर एवं समाधान हो सकते हैं । परन्तु, मुख्य हेतु है-मानव जाति को दुराचार - अनाचार आदि पापाचारों से हटा कर दान दया, तपत्याग, वासना - नियंत्रण आदि शुभ पुण्याचरणों की ओर अभिमुख करना । यह प्रयोग कितना सफल रहा है, यह बात दूसरी है, किन्तु उक्त चर्चाओं को उपस्थित करने वालों के मन के भावों को बहुत अधिक शंका की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता है । और भी कुछ हेतु रहे हों, परन्तु हम यहाँ प्रस्तुत अच्छे हेतु को ही प्रमुखता दे कर, अपने लेख की यात्रा शुरू कर रहे हैं ।
स्वर्ग की चर्चा अभी एक तट पर छोड़ देते हैं । नरक का चित्रण करना ही, वस्तुतः लेख का मुख्य आधार है । नर-लोक के दुःखों का वर्णन बहुत भयंकर है । नरक के प्राणी को आग में जलाया जाता है, अंग अंग काट देने वाले असि पत्र वन में घुमाया जाता है भयंकर पीड़ा देने वाली कृत्रिम वैतरणी नदी में डुबाया जाता है | पूर्व जन्म के सुरपाई व्यक्ति को भयंकर उकलता हुआ तांबा - लोहा आदि गलाकर पिलाया जाता है । मांस खाने वाले को उसीके ही अंग का तथाकथित मांस काट-काट कर खिलाया जाता है । ढंक एवं गिद्ध आदि पक्षियों से उसके शरीर को नोचाया जाता है । बड़ी भयंकर पीड़ा का दृश्य है । जैनागमों,
चिन्तन के झरोखे से :
το
Jain Education International
-
-
For Private & Personal Use Only
-
www.jainelibrary.org