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पुण्य और धर्म की गुत्थी
जीवन के दो भाग :
__ हम अपने जीवन के मुख्यतया दो भाग देखते हैं। एक भाग भोतिक है, और दूसरा है आध्यात्मिक । भौतिक में क्या है ? यह शरीर है, इन्द्रियाँ हैं, मन है । यह जो हमारे अन्तर् में क्रोध, मान, माया, लोभ, आदि विकृतियाँ तथा काम आदि अशुभ-वृत्तियाँ एवं सेवा - सद्भावना, परोपकार आदि जो शुभ वृत्तियाँ हैं, ये सब भी मूलतः हमारे जीवन की शुभ-अशुभ भौतिक परिणतियाँ हैं । और जो स्वर्ग - नरक, सुख - दुःख आदि जितने भी ये बाहर के रूप हैं, वे भी सब-के-सब भौतिक - क्षेत्र के अन्तर्गत आ जाते हैं ।
हमारे जीवन का दूसरा भाग आध्यात्मिक है। उसमें क्या आता है ? उसमें आत्मा और आत्मा का स्वरूप आ जाता है। जब आत्मा का स्व-स्वरूप आता है, तो उसमें क्षमा, दया, विनय, सन्तोष, श्रद्धा, सत्य, शील, अहिंसा, ब्रह्मचर्य आदि सब-के-सब गुण अध्यात्म क्षेत्र के दायरे में आ जाते हैं । ये दोनों भाग कहाँ से आए ?
यहाँ दर्शन-शास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न खड़ा होता है, कि यह जो भौतिक - भाग है, वह कहाँ से आया? और, जो आध्यात्मिक भाग है, वह कहाँ से आया ? जीवन-क्षेत्र में इनकी उत्पत्ति के कारण परस्पर सर्वथा भिन्न दो हैं या एक है ? आखिर बिना कारण के तो कोई कार्य होता ही नहीं। कोई-न-कोई कारण तो अवश्य होना चाहिए। भौतिक भाग के अन्तर्गत ये प्रश्न उठते हैं, कि यह हमारा शरीर कहाँ से आया ? ये इन्द्रियाँ, यह मन, ये सब-के-सब कहाँ से आ कर खड़े हो गए और हमसे चिपट गए ? ३६
चिन्तन के झरोखे से :
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