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बोले कि भाई ! किसी का एक मनुष्य भी जावे तो भी वह अत्यन्त विलाप करता है मेरे तो पांच एक साथ जाते हैं और टोला म खलबली मचती है मैं कैसे न विलाप करू । ऐसा द्रव्यगुरु का मोह देखकर भिक्षु स्वामी का मन किञ्चिदपि विचलित नहीं हुआ और विचारा कि इसी तरह जव मैं घर से निकला था तव मेरी माता भी रोई थी। इन वेषधारियों में रहने से तो पर भव में अतीव दुःख उठाना पड़ेगा। अन्त्य में रघुनाथजी ने भिक्षु स्वामी से कहा कि तू जावेगा कहाँतक तेरे पीछे२ मनुष्य लगा दूंगा। और मैं भी पीछे २ ही विहार करूंगा। इत्यादिक भयावह वातोंपर कुछ भी ध्यान नहीं दिया और भिक्षु ने वगड़ी से विहार किया। द्रव्यगुरु को अपने पीछे २ ही आता देखकर के “वरल” नामक ग्राम में चर्चा की। आदि में रघुनाथजी ने कहा कि भिक्षो ! आजकल पूरा साधुपना नहीं पल सक्ता है। यह सुनकर भिक्षने कहा कि-आचारांग सूत्र में कहा है कि "आजकल साधुपना नहीं पल सक्ता" ऐसी प्ररूपणा भागल साधु करेंगे इत्यादिक वातें भगवान ने कई सलोपर पहिले से ही कह दी हैं। ऐसा उत्तर सुनकर द्रव्यगुरु को उस समय अत्यन्त कष्ट हुआ और बोले कि यदि कोई दो घड़ी भी शुभ ध्यान धर कर शुद्ध ओचार पाल लेगा वह केवल ज्ञान को प्राप्त कर सक्ता है। यह सुनकर भिक्षु ने कहा कि यदि दो घड़ी में ही केवलज्ञान मिले तो मैं श्वास रोक कर के भी दो घड़ी ध्यान धर सक्ता हूं। परन्तु ये वात नहीं यदि दो घड़ी में ही केवलज्ञान मिल सक्ता तो क्या प्रभव आदिक ने दो घड़ी भी शुद्ध चारित्र नही पाला था किन्तु उनको तो केवलज्ञान नहीं हुआ।वीर भगवान्के १४ सहस्र शिष्यों में से केवलज्ञानी तो केवल ७ सौ ही हुए क्या शेष १३ सहस्र ३ सौ ने २घड़ी भी शुद्ध संयम नहीं पाला जो कि छद्भस्थ ही रहे आये । और १२ वर्ष १३ पक्ष तक वीर भगवान् छद्भस्थ अवस्था में रहे तो क्या उस अवसर में वीर ने दो घड़ी भी शुद्ध संयम की पालना नहीं की। इत्यादिक अनेक सत्य प्रमाणों से भिक्षु ने रघुनाथजी को निरुत्तर करते हुए बहुत समय पर्य्यन्त चर्चा की। तथापि दुराग्रह के कारण रघुनाथजी ने शुद्ध पथ का अवलम्बन नहीं किया। इसके अनन्तर किसी वाईस टोला के विभाग के पूज्य जयमलजी नामक साधु भिक्षु स्वामी से मिले। भिक्षु ने प्रमाणित युक्तियों से जयमलजी के हृदय में शुद्ध श्रद्धा वैठाल दी और जयमलजी भिक्ष के साथ जाने को तयार भी हो गये। अव यह वात रघुनाथजी ने सुनी कि जयमलजी भिक्ष के अनुयायी होना चाहते हैं तव जयमलजी से कहा कि जयमलजी ! आप एक टोला के धनी होकर यह क्या