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यन्त्र और चैतन्य यन्त्र भी चलता है, मनुष्य भी चलता है। पर दोनोंकी गतिमें उतना ही अन्तर है जितना यन्त्र और मनुष्यमें । यन्त्र निश्चित गतिसे चलता है, उसमें देश, काल और परिस्थितिका विवेक नहीं होता, क्योंकि वह मनुष्य नहीं है । मनुष्य अपनी गतिमें परिवर्तन भी लाता है, उसमें देश, काल और परिस्थितिका विवेक होता है, क्योंकि वह यन्त्र नहीं है।
भाव और अनुभाव
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