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बालकोड़ा
देव ! मैं तुम्हें ढूढ़नेको बाहर गया, तब तुम नहीं दीखे । मैं थककर अपने घरमें चला आया। मैंने विस्मयके साथ देखा कि तुम वहाँ बैठे हो। मैं स्थूल हुआ, तुम सूक्ष्म हो गये। मैं सूक्ष्म हुआ, तुम स्थूल हो गये। देव ! तुम मेरे साथ बाल-क्रीड़ा कर रहे हो। इस प्रकार तुम्हारा बड़प्पन कैसे सुरक्षित रहेगा ?
भाव और अनुभाव
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