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अकर्मण्यता नहीं जैनधर्मने सिखाया असत् मत करो, सत् करो। सत्की मात्रा बढ़ेगी, तब नहीं करनेकी दशा आयेगी। नहीं करनेका अर्थ अकमण्यता नहीं, किन्तु कर्मण्यताका पथ-प्रशस्त करना है। असतका निषेध नहीं आता, तब सत्का रूप नहीं खिलता । कुशलमें अकुशलका निरोध होता है, तब ही कुशलका कौशल टिकता है।
माव और अनुभाव
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