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अर्थवाद
जिस दिन यह समझमें आ जायेगा कि संग्रहकी वृत्तिने मानवताकी जड़ खोखली कर दी, उस दिन सिर्फ अर्थ रहेगा, उसका वाद नहीं। अपरिग्रह फैलेगा उसका अनुवाद नहीं ।
यह सही है कि सब अपरिग्रही नहीं बन सकते पर अपरिग्रहके पथिक बन सकते हैं। परिग्रह पीठके पीछे रहे मुँहके सामने नहीं। लोग उसको न देखें, वह उनको देखे ।
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भाव और अनुभाव
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