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तुलसीके प्रति विनीतात्मन् ! क्या कहूँ ? तुम्हारी कृतियोंने पूर्ववर्ती आचार्योंकी स्मृति भुला-सी दी है यह क्या विनय ?
घड़े चार-पांच सेर पानी समाता है, अगस्त ऋषि तीन चुल्लूमें सारा समद्र पी गये। यह कैसा बेटा?
भाव और अनुभाव
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