Book Title: Bhav aur Anubhav
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 130
________________ आत्म-सत्य रस्सीका एक ही सिरा होता तो गाँठ नहीं होती । मनुष्य अकेला ही होता तो द्वन्द्व नहीं होता । सिरपर एक ही बाल होता तो जटिलता नहीं होती । एक ही मस्तिष्क होता तो संघर्ष नहीं होते । ये अलगाव, लड़ाइयाँ, उलझनें और चिनगारियाँ बहुता के परिणाम हैं । यह विश्वाकाश बहुता और एकताके चाँद-सूरजसे रुका हुआ है । यह हमारा सूर्य बहुताकी अनभिव्यक्ति में एकताकी स्पष्ट व्यंजना है । अमावसकी रात एकताकी अनभिव्यक्तिमें बहताको स्पष्ट व्यंजना है । पूर्णिमाको रात व्यक्ति और समष्टिका सुन्दर समन्वय है । व्यक्ति और समष्टिका संगम मिटनेवाला नहीं है । व्यक्ति भी सत्य है, समष्टि भी सत्य है । सत्यको मिटाया नहीं जा सकता । १२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only भाव और अनुभाव www.jainelibrary.org

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