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पारखी
अपने रूपमें सब वस्तुएँ शुद्ध होती हैं । अशुद्ध वह होती है, जिसका अपना रूप कुछ दूसरा हो और दीखे वह दूसरे रूपमें । यह अन्तर् और बाहरका भेद जनताको भुलावेमें डालता है। इसीलिए मनुष्यको पारखी बननेकी आवश्यकता हुई।
परख
परीक्षाके लिए शरीर-बल अपेक्षित नहीं है। वह बुद्धि-बलसे होती है। शरीर-बल जहाँ काम नहीं देता वहाँ बुद्धि-बल सफल हो जाता है।
भाव और अनुभाव
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