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विरोधका परिणाम
विरोधसे अप्रिय वातावरण ही नहीं बनता, उससे प्रिय परिस्थितिका निर्माण भी होता है । विरोधके समय जो संगठन होता है, वह साधारण स्थितिमें नहीं होता । अप्रिय परिस्थितिको एक बार सहना ही कठिन होता है । जो एक बार उसे सह लेता है उसके लिए वह अप्रिय नहीं होती । विरोध मानसिक सन्तुलनकी कसौटी है । विरोधी वातावरणको देख जो घबरा जाता है वह पराजित हो जाता है और जो उससे घबराता नहीं वह उसे पराजित कर देता है ।
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भाव और अनुभाव
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